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132... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... अनुसार शुद्ध गाय के घी से बना हुआ दीपक ही पूजा हेतु प्रयोग करना चाहिए। दीपक भी यथाशक्ति सोने, चाँदी, ताँबा अथवा पीतल का होना चाहिए। शुद्ध घी का दीपक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करता है। डालडा घी या तैल के दीपक मन्दिर में नहीं करना चाहिए।
दीपक करने से पूर्व बत्ती को घी से अच्छी तरह पूरित करना चाहिए। कई लोग घी में बत्ती डूबाकर ही दीपक जला लेते हैं जो पाँच मिनट में बुझ जाता है। परमात्मा के दरबार में इस प्रकार की कृपणता नहीं दिखानी चाहिए।
श्रावकों को यथाशक्य अपना दीपक लाना चाहिए। यदि मन्दिर का दीपक उपयोग करते हैं तो उसमें घी पूरित करना चाहिए। यदि कारण विशेष में उपयोग कर रहे हैं तो उतना द्रव्य भी भंडार में डाल सकते हैं।
जो श्रावक दीपक साथ में लाते हैं उन्हें प्रदक्षिणा देने के बाद दीपक प्रगटा देना चाहिए। यहाँ पर मात्र दीपक प्रकट करना है। दीपक पूजा तो उसका क्रम आने पर ही करनी चाहिए क्योंकि दीपक पूजा पाँचवें क्रम पर की जाती है। परंतु पर्व में दीपक प्रकट करके रखने से वह जितने अधिक समय तक जलता है, वातावरण की उतनी ही अधिक विशुद्धि होती है। कई लोग दीपक पूजा से पूर्व दीपक प्रज्वलित करते हैं, इससे विधि तो सम्पन्न हो जाती है परन्तु भावों में वह उल्लास और वेग उत्पन्न नहीं होता जो दीपक पूजा के समय होना चाहिए। ____ जैसे आरती को घुमाते हैं वैसे दीपक नहीं घुमाना चाहिए। दीपक के ज्योति की स्थिरता मन में भी स्थिरता उत्पन्न करती है।
दीपक पूजा कब करनी चाहिए इस विषय में यदि श्रावक की त्रिकाल पूजा सम्बन्धी चर्या का अवलोकन करें तो तीनों समय ही दीपक पूजा की जा सकती है। कई लोग दीपक पूजा को ही आरती मानते हैं। यद्यपि आरती दीपक पूजा का ही रूप है किन्तु अष्टप्रकारी पूजा में दीपक पाँचवें स्थान पर है वहीं आरती अष्टप्रकारी पूजा के बाद की जाती है। आरती संन्ध्या के समय करनी चाहिए जबकि दीपक पूजा दर्शन करते हुए कभी भी की जा सकती है। वर्तमान में अनेकशः मन्दिरों में अखंड दीपक का विधान देखा जाता है। ___ दीपक को परमात्मा की दायीं तरफ रखना चाहिए। दीपक खुला रहने पर उसमें पतंगा आदि जीवों की हिंसा हो सकती है। अत: दीपक को फानस में अथवा छिद्र वाले ढक्कन से ढंकना चाहिए। दीपक पूजा परमात्मा के मूल