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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...237 गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर शेर की मुखाकृतियाँ क्यों? मन्दिर शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका प्रत्येक भाग कुछ विशिष्ट रहस्यों का प्रतीक है। इसी शिल्पकला के अन्तर्गत मूलगर्भगृह के प्रवेश द्वार पर शेर के दो मुख बनाए जाते हैं। यहाँ यह शंका होना स्वाभाविक है कि मन्दिर जैसे शांतप्रशांत स्थान में सिंह जैसे डरावने और विकराल चेहरे के निर्माण का क्या है? गीतार्थ आचार्यों ने दोनों चेहरों की दो अलग-अलग उपमाएँ दी हैं- 'व्याघ्ररागो द्वेषकेशरी'। दोनों आकृतियों में से एक का मुख शेर जैसा होता है और दूसरे का सिंह जैसा और शेर का मुखराग का सूचक है और सिंह का मुख द्वेष का। परमात्म के मूल गर्भगृह में उन पर पैर रखकर प्रवेश करना चाहिए ऐसा शास्त्रकारों का कथन है। ___संसार में दुःख देने वाले एवं संसार परिभ्रमण बढ़ाने वाले मुख्य दो तत्त्व राग और द्वेष हैं। इनका दमन करके ही परमात्म अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। इन दोनों का स्वरूप विकराल सिंह के समान है अत: गर्भगृह के द्वार पर शेर का मुख बनाया जाता है। उनके ऊपर पैर इसी भावना से रखा जाता है कि हमारे जीवन में रहे राग और द्वेष रूपी सिंह का दमन हो सके। पूजा करते समय मुखकोश क्यों और कैसा बांधना चाहिए? ___ मानव शरीर को अशुचि का पिंड माना गया है। वह स्वभाव से ही अशुद्ध है। गंदगी और बदबू सदा इसमें उत्पन्न होती रहती है। सर्वत्र परमात्मा की पूजाआराधना करते हुए यह अशुचि आशातना का कारण न बने इस हेतु विशेष ध्यान रखना चाहिए।
परमात्मा की पूजा करते हुए भी श्वासोच्छ्वास की क्रिया जारी रहती है। बाहर निकलती हमारी गर्म श्वास अशुद्धि और दुर्गन्ध युक्त होती है। परमात्मा की पूजा करते समय हमारे श्वोसोच्छ्वास के स्पर्श से जिन बिम्ब की आशातना हो सकती है। बाहर निकलती हुई गर्म उच्छ्वास इतनी अधिक कीटाणुओं एवं दुर्गन्ध से युक्त होती है कि उसे रोकने हेतु एक दो पट्ट का वस्त्र बांधने से कार्य नहीं हो सकता इसलिए दुपट्टे के किनारे से मुख और नाक पूर्णतः ढंक जाए इस रीति से आठ तहवाला मुखकोश बांधना चाहिए।
पूर्व काल में राजा-महाराजाओं की हजामत करते समय हजाम मुख पर आठ पट्ट वाला मुखकोश बाँधते थे। जिससे उनके मुख की दुर्गन्ध, थूक आदि