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324... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
निर्मित श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की प्रतिमा आज भी महाराष्ट्र के शिवपुर नगर में स्थित है। यह स्थान अंतरिक्ष पार्श्वनाथ के नाम से भी तीर्थ रूप में प्रसिद्ध है।
बीकानेर के मन्दिर में अनेक प्रतिमाएँ 2400 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। श्रीपाल एवं मयणासुंदरी द्वारा केशरियानाथ की आराधना का वर्णन आता है। यह केशरिया तीर्थ उदयपुर के पास आज भी विद्यमान है। जिसे भीलों के द्वारा कालिया बाबा के रूप में आज भी पूजा जाता है।
खजुराहो में प्राप्त मन्दिरों में काले पत्थर की अनेक खंडित-अखंडित प्रतिमाएँ प्राप्त हुई है। यह प्रतिमाएँ नौवीं से ग्यारहवीं सदी के आस-पास की है।
दक्षिण भारत में स्थित बादामी गुफा में 16 फुट की महावीर स्वामी की प्रतिमा है। यह लगभग 1500 वर्ष प्राचीन गुफा है। मन्दिरों की नगरी शत्रुंजय तीर्थ में लगभग 3000 जिनमंदिर एवं 25000 जिनप्रतिमाएँ है। कुकुट्टेश्वर एवं कलिकुण्ड पार्श्वनाथ की प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ के समय में ही निर्मित की गई थी।
इसी प्रकार गिरनार, आबु - देलवाड़ा, राणकपुर, तारंगा आदि अनेकों तीर्थ ऐसे हैं जिनसे कई प्राचीन दृष्टांत जुड़े हुए हैं। भारत के हर कोने में ऐसे प्राचीन तीर्थ प्राप्त होते हैं जो जैन धर्म की व्यापकता को सिद्ध करते हैं। जिनशासन के कीर्तिधर महापुरुष
यदि इतिहास के पृष्ठों पर नजर घुमाएँ तो ऐसे अनेक राजाओं-श्रेष्ठियों आदि के उल्लेख प्राप्त होते हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में जिन धर्म की विशेष प्रभावना की ।
राजा अशोक के रचयिता राजतरंगिणी कवि कल्हण के अनुसार सत्यप्रतिज्ञ राजा अशोक ईसा पूर्व 1445 में काश्मीर के राज्य सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसने जैन धर्म को स्वीकार कर कसबा विजवारह में आलिशान मजबूत जिनमंदिर बनवाए शुष्कलेत्र, वितस्तात्र, विस्तारपुर में भी अनेक जिनमंदिर बनवाए।
राजा जलौक- यह अशोक का पुत्र था एवं काश्मीर घाटी में अनेक जैन मंदिरों का निर्माण करवाया।
राजा जैनेह - यह अशोक का भतीजा था और इसने अनेक जैन मंदिरों का निर्माण करवाया।