Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 443
________________ श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती ...377 भेज देनी चाहिए ताकि उनकी उचित सत्कार भक्ति एवं आराधना हो सके। शंका- पूजा के वस्त्र अधिक समय तक पहनकर नहीं रखना चाहिए। ऐसी स्थिति में प्रश्न होता है कि तब तो शंखेश्वर, पालीताना आदि में पूजा का नम्बर न लगे तब तक पूजा के वस्त्र पहनकर रखने से भी आशातना होती होगी? समाधान- पसीने आदि से वस्त्र अशुद्ध न हो अथवा अन्य सांसरिक कार्य उनमें सम्पन्न न किए जाए इस हेतु पूजा के वस्त्र अधिक समय तक न पहनकर रखने का नियम है। यदि जिनालय में परमात्मा भक्ति करते हुए या पूजन-महापूजन आदि में चार-पाँच घंटे पूजा के वस्त्र पहने हए रहते हैं तो उसमें आशातना नहीं होती। उन वस्त्रों को दूसरी बार प्रयोग करने से पूर्व धो लेना चाहिए। शंका- वर्तमान में मंदिर परिसर के अन्तर्गत बनते स्नानघर, पुजारियों के निवासस्थान आदि उचित है या अनुचित? समाधान- यहाँ पर दोनों पक्षों से विचार करना आवश्यक है। ऐसे स्थान जहाँ पर मंदिर एवं घरों के बीच की दूरी 5-10 किमी से अधिक है तथा पूजा के वस्त्र पहनकर आना संभव नहीं है वहाँ बाथरूम का निर्माण आवश्यक है। किन्तु आजकल जगह की अल्पता के कारण मंदिरों के बाजु में ही स्नानघरों का निर्माण होने लगा है जो कि सर्वथा अनुचित है एवं असभ्य भी। जिसप्रकार स्थान की अल्पता में भी हम अपने घरों का सुनियोजित निर्माण करते हैं, वैसे ही मंदिर निर्माण से पूर्व भी समस्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सभी स्थानों का नियोजन करना चाहिए। यदि कुछ असुविधा हो तो मंदिर का निर्माण सबसे ऊपरी मंजिल पर किया जाना चाहिए एवं शेष स्थानों का निर्माण नीचे करना चाहिए। इसी प्रकार आजकल पुजारियों के आवास स्थान भी मंदिरों में ही बनने लगे हैं। कई बार वे इतने नजदीक बना दिए जाते हैं कि मंदिर दर्शनार्थियों एवं पूजा करने वालों को उससे विघ्न उपस्थित होता है। उनके द्वारा मंदिर परिसर में रात्रि भोजन, अभक्ष्य भोजन आदि भी किया जाता है। अतः श्रावक वर्ग को सचेत होते हुए ऐसी सामान्य आशातनाओं से बचने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।

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