Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 454
________________ 388... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... आचमन नहीं किया जाता क्योंकि श्रावक वर्ग के लिए निर्माल्य का उपभोग निषिद्ध है। कुछ आचार्य बगीचे में निर्माल्य जल के परिष्ठापन का निषेध करते हैं। उनके अनुसार जिस पौधे को निर्माल्य जल से सिंचित किया गया हो उसके पुष्प परमात्मा को चढ़ाए नहीं जा सकते। शास्त्रानुसार निर्माल्य जल को ऐसे स्थान पर परिष्ठापित करना चाहिए जहाँ पर किसी के पैर नहीं आते हो तथा जीवोत्पत्ति भी न होती हो। कुछ ग्रंथों में 8 फुट गहरी और 3 x4 फुट लंबी चौरस कुंडी बनाकर एवं उसमें मिट्टी आदि डालकर न्हवण जल परठने का निर्देश है। उसकी मिट्टी को ऊपर-नीचे करते रहना चाहिए। थोड़े-थोड़े समय के बाद उसे बदलते रहना चाहिए। मानव मन का स्वभाव बड़ा ही विचित्र है। वह गलत कार्य में शंका करे या न करे किन्तु अच्छे कार्य में उसे हजारों शंकाएँ उत्पन्न होती है। इन शंकाओं के कारण भक्त का मन भक्ति से पूर्ण रूपेण जुड़ नहीं पाता। मन में दबी हुई छोटी सी शंका रूपी चिनगारी श्रद्धा रूपी भवन को जलाकर खाक कर देती है। एक घटना के विविध पहलू होते हैं और उनमें से किसी एक पक्ष का आग्रह या अन्य पक्षों के विषय में अज्ञेयता भी कई बार सत्य को जानने में बाधक बनती है। यह अध्याय ऐसी ही भ्रमित मान्यताओं एवं शंकाओं के निवारण में सहायक बनेगा। सही और गलत में भेद रेखा उत्पन्न करते हुए जिनपूजा के उत्कृष्ट मार्ग पर गति करवाएँ यही प्रयास है।

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