Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 453
________________ श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती ...387 शंका- स्नात्र पूजा में पंचतीर्थी प्रतिमा ही क्यों रखी जाती है ? समाधान - स्नात्र पूजाकार श्री देवचंद्रजी महाराज ने स्नात्र पूजा में पाँच तीर्थंकरों की कुसुमांजलि करने का ही वर्णन किया है। पंचतीर्थी प्रतिमा में ये पाँचों प्रतिमाएँ होती हैं अतः स्नात्र पूजा में पंचतीर्थी प्रतिमा ही रखी जाती है । त्रिगड़े में पाँच अलग-अलग प्रतिमाजी रखना संभव भी नहीं है। पंचतीर्थी प्रतिमा इन पाँचों का सर्वोत्तम Substitute है। 24 तीर्थंकरों में यह पाँच तीर्थंकर विशेष प्रसिद्ध एवं जनश्रद्धा का केन्द्र होने से देवचंद्रजी महाराज ने इन पाँचों का ही उल्लेख किया होगा। पंचतीर्थी में मुख्य बिम्ब शांतिनाथ भगवान का होता है । इसका कारण यह है कि स्नात्र पूजा के द्वारा विश्व मंगल, विश्व शांति की कामना की जाती है। शांतिनाथ भगवान उपसर्ग निवारक एवं शांति प्रदायक माने जाते हैं। शंका- कुछ मंदिरों में अभिषेक जल के निर्गमन स्थान पर मगरमच्छ आदि प्राणियों की मुखाकृति क्यों बनाई जाती है ? समाधान- भारतीय संस्कृति में मंदिरों को कला का श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। इनका प्रत्येक भाग कला एवं सौंदर्य से परिपूर्ण होता है। अभिषेक निर्गमन स्थान पर मगरमच्छ, सिंह, गाय आदि की मुखाकृति कला का ही एक नमूना है। इसी प्रकार मंदिरों के बाहर हाथी, सिंह आदि भी कला का ही एक रूप है। इसी के साथ जिस प्रकार राजा-महाराजाओं के महलों के बाहर हाथी आदि उनके वैभव के प्रतीक माने जाते हैं। वैसे ही ये परमात्मा की महिमा एवं वैभव के प्रतीक हैं। शंका- प्रक्षाल करने के बाद न्हवण जल का क्या करना चाहिए ? समाधान- न्हवण जल यह निर्माल्य द्रव्य है। निर्माल्य का प्रयोग स्वेच्छा एवं व्यवस्था अनुसार किया जा सकता है। कई स्थानों पर इसे गंगा आदि नदियों में प्रवाहित किया जाता है। कहीं पर इसे बगीचे में डाल दिया जाता है तो कुछ मन्दिरों में न्हवण जल पूजारी को दिया जाता है या पशु-पक्षियों को भी पिलाया जाता है। निर्माल्य द्रव्य आदि का वर्णन आगमों में कहीं भी प्राप्त नहीं होता। यह एक परवर्ती परम्परा है। अतः इस विषय में किसी एक परम्परा का आग्रह नहीं रखना चाहिए। वैष्णव परम्परा की भाँति जैन परम्परा में निर्माल्य जल का

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