Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 463
________________ जिनपूजा सम्बन्धी विषयों की विविध पक्षीय तुलना... ...397 सके तथा आज के भौतिक संसाधन युक्त जीवन में भी सुज्ञ वर्ग अध्यात्म मार्ग पर प्रगति कर सकें। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि जिनपूजा एवं जिनप्रतिमाओं का इतिहास आगमकालीन है । आगम ग्रन्थों में इनका विवरण एवं पुरातत्त्व विभाग के शोध में प्राचीन जिन प्रतिमाओं के शिलालेख आदि की प्राप्ति इसकी शाश्वतता एवं प्राच्यता के स्पष्ट प्रमाण हैं। आगमकाल में प्रसंग विशेष उपस्थित होने पर सर्वोपचारी पूजा करने के उल्लेख आगम एवं व्याख्या साहित्य में प्राप्त होते हैं। इनके आधार पर यह प्रतिभासित होता है कि सामान्य पूजा नित्यक्रम के रूप में की जाती होगी तथा सर्वोपचारी पूजा प्रसंग या पर्व विशेष में । मध्यकाल में सर्वोपचारी, अष्टोपचारी एवं पंचोपचारी पूजाओं का वर्णन प्राप्त होता है तथा संभवतया पंचोपचारी या अष्टोपचारी पूजा नित्यक्रम के रूप में की जाती होगी । पूर्वकालीन विधियों में कोई विशेष परिवर्तन मध्यकाल तक परिलक्षित नहीं होता है। बारहवीं शती में जब अंचलगच्छ का उद्भव हुआ तब नित्य स्नान एवं विलेपन का प्रवर्त्तन होने से अनेकविध मुख्य परिवर्तन पूजा-विधानों में प्रविष्ट हुए होंगे ऐसा प्रतीत होता है। यदि पूजा विषयक साहित्य के विषय में अध्ययन करें तो मध्यकाल में आचार्य हरिभद्र एवं चैत्यवासी आचार्यों ने अनेक प्रामाणिक ग्रन्थों की रचनाएँ कर जैन साहित्य को समृद्ध किया । यद्यपि उस काल में चैत्यवास की प्रधानता होने से जैन मुनियों के आचार पक्ष में काफी पतन हुआ परंतु जैनों का साहित्यिक एवं तार्किक पक्ष काफी मजबूत भी हुआ था और वैदिक धर्म आदि के प्रभाव से क्रियानुष्ठानों में भी काफी वृद्धि हुई थी । मध्यकाल के अंतिम पड़ाव में यद्यपि पूजा विधियों में अनेकशः परिवर्तन आए, परंतु उनकी मौलिकता यथावत थी । अष्टोपचारी पूजा में मात्र स्नान का वर्धन हुआ था और सर्वोपचारी पूजा का प्रचलन कम होता जा रहा था। उसके स्थान पर लोक भाषा में लघु स्नात्र पूजाएँ प्रचलन में आ रही थी । यदि सत्रहवीं शती के परवर्ती अर्वाचीन काल में प्रवर्तित पूजा विधियों का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि आठवीं पूजा के रूप में प्रचलित जल पूजा अपना प्रथम स्थान बना चुकी थी। सर्वोपचारी पूजाएँ जो कि मूल रूप से संस्कृत या प्राकृत भाषा

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