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अध्याय-11 जिनपूजा सम्बन्धी विषयों की विविध पक्षीय
तुलना एवं उनका सारांश जिनपूजा के संदर्भ में यदि जैन वाङ्मय का अध्ययन किया जाए तो प्राचीन काल से अब तक अनेकशः अंतर परिलक्षित होते हैं। यदि तीनों काल की रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पूर्वकालीन राजप्रश्नीय सूत्र, ज्ञाताधर्मकथासूत्र, जीवाभिगमसूत्र, जंबुद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, आवश्यकसूत्र, आवश्यक नियुक्ति, सूत्रकृतांग नियुक्ति, बृहत्कल्पभाष्य आदि में जिनपूजा एवं तीर्थंकरों के जन्माभिषेक आदि का वर्णन स्पष्ट रूप से उपलब्ध होता है। इनमें भी मूल आगमों में प्राप्त वर्णन लगभग समान है। इसके अतिरिक्त अन्य आगमों में भी किसी न किसी रूप में जिनप्रतिमा या जिनपूजा से सम्बन्धित कोई न कोई उल्लेख प्राप्त हो जाता है। ____ मध्यकालीन साहित्य में जिनप्रतिमा एवं जिनपूजा के सम्बन्ध में ठोस एवं बृहद्स्तरीय कार्य हुआ। यद्यपि इस युग में किया गया वर्णन आगमिक वर्णन से अपेक्षाकृत भिन्न है। मध्यकाल में जिनपूजा श्रावकों का एक नित्य आवश्यक क्रम बन चुकी थी किन्तु जल अभिषेक को अष्टप्रकारी या नित्यकर्म में स्थान नहीं मिला था। तत्कालीन ग्रन्थों में प्ररूपित पूजाविधियों में भी बहुत सी भिन्नताएँ दृष्टिगत होती हैं। मध्यकालीन ग्रन्थों में पूजा के तीन, पाँच, आठ, सत्रह, इक्कीस आदि अनेक भेद किए गए हैं, तथा उनमें भी मतांतर दृष्टिगम्य होता है। ___ अर्वाचीन काल की रचनाओं का अवलोकन करें तो इसमें मध्यकालीन साहित्य की अपेक्षा कुछ परिवर्तन परिलक्षित होते हैं। मुख्य रूप से जो एक परिवर्तन हुआ वह था अष्टप्रकारी पूजाओं में नित्य स्नान या प्रक्षाल क्रिया का सम्मेलन। इससे पूर्व तक अष्टप्रकारी पूजा में जिन अभिषेक को स्थान प्राप्त नहीं था। उस समय अष्टोपचारी पूजा में जलपूजा का आठवाँ स्थान था और जिसमें