Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 460
________________ 394... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म.... प्रक्षालन एवं अंगुलंछन कब हो और किस तरह विलेपन आदि आगे की पूजाओं को निपटाएँ इसकी प्रतिक्षा करते हैं। यह व्यवहारगत तथ्य है कि जो वस्तु जितनी दुर्लभ होती है, व्यक्ति उसे पाने हेतु उतना ही लालायित रहता है वहीं अनमोल सुलभ वस्तु का मूल्य वह नहीं समझ पाता । इसी प्रकार प्रक्षाल आदि नित्यक्रिया होने से उसके प्रति रुचि एवं आदरभाव कम हो गए हैं। • कुछ समय पूर्व तक प्रायः सभी जिन उपासकों के घरों में गृह मंदिर होता था। प्रात:काल में शुद्ध होकर गृह चैत्य में परमात्मा की गंध, पुष्प आदि से पूजा कर ली जाती थी तथा समय होने पर नगरस्थित भक्ति चैत्य में भी पूजाभक्ति आदि की जाती थी । किन्तु नित्य स्नान आदि के बढ़ते उपक्रम एवं वर्तमान व्यस्त भाग- ग-दौड़ की जीवनशैली के कारण घर मन्दिरों की संख्या ही रह गई है। • उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो अणहिलपुर पाटण में 19वीं सदी तक जहाँ 500 गृह मन्दिर थे वहाँ आज मात्र 25-30 गृह मन्दिर भी नहीं बचे हैं। पूर्वकाल में जिनमंदिर सम्बन्धी देख-रेख का कार्य श्रावक वर्ग के द्वारा किया जाता था। प्रत्येक जिनालय की व्यवस्था हेतु एक गोष्ठी मंडल की स्थापना की जाती थी जैसे वर्तमान में ट्रस्ट या कार्यकारिणी का गठन किया जाता है। इससे जिनालय की देख-रेख सम्यक प्रकार से होती थी। परंतु वर्तमान श्रावकों की व्यस्त दिनचर्या एवं नित्यप्रक्षाल के कारण मंदिरों में बढ़े हुए कार्यभार की वजह से वेतनभोगी कर्मचारियों को नितांत आवश्यक कर दिया है। मंदिर खोलने से लेकर पूजा, प्रक्षाल, साफ-सफाई, आरती आदि सब उन्हीं की जिम्मेदारी है। श्रावक एवं ट्रस्टीगण तो समय मिलने पर कदाच Inspection करने चले जाते हैं। · पहले के समय में अधिकांश प्रतिमाएँ परिकरयुक्त बनाई जाती थी जिन्हें देखकर परमात्मा का प्रातिहार्यमय अरिहंत स्वरूप सहज मानस पटल पर उपस्थित हो जाता था परन्तु वर्तमान में नित्य प्रक्षाल का विधान होने से परिकरों की सफाई रोज-रोज करना कठिन प्रतीत होने लगा और इस कारण आजकल ज्यादातर प्रतिमाएँ परिकर रहित ही बनाई जाने लगी है। इस वजह से परमात्मा की प्रातिहार्य युक्त अवस्था भी स्मृति में नहीं आती। • नित्य प्रक्षाल के साथ श्रावक वर्ग की बढ़ती असावधानी एवं प्रक्षाल

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