Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 447
________________ श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती ...381 पुद्गल इस वायुमण्डल में बिखरे हुए है । प्रतिष्ठा विधान में मंत्रोच्चार एवं विधिविधान द्वारा उन पुद्गलों को आकर्षित करके प्रतिमा में आरोपित किया जाता है। इन शुभ पुद्गलों से ही प्रतिमा अतिशयवान बनती है और जीव को शिव बनाती है। शंका- मंदिर के बाहर हाथी की आकृति क्यों बनाई जाती है ? समाधान- हाथी एक श्रेष्ठ प्राणी है। मंदिरों के बाहर हाथी बनाने के अनेक हेतु हैं। सर्वप्रथम हाथी अभिमान का प्रतीक है और परमात्मा के दरबार में मान गलाकर जाना चाहिए। दूसरा तथ्य है कि पूर्वकाल में राजा-महाराजा हाथी पर बैठकर अपनी सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ मन्दिर जाते थे। हमें भी वैसे ही अपने सामर्थ्य के अनुसार एवं सम्पूर्ण ऐश्वर्य के साथ जिनमंदिर जाने की प्रेरणा मिलती है। तीसरा तथ्य है कि हाथी जब अपनी मस्ती में चलता है तो उसके पीछे सौ कुत्ते भौकें तो भी उसे कोई फरक नहीं पड़ता वैसे ही परमात्म भक्ति करते समय दुनिया के किसी भी अन्य कारण या लोगों से हमें कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए। शंका- भगवान मोक्ष चले गए है तो फिर मंदिरों में अमीवर्षा आदि के चमत्कार कैसे होते हैं ? समाधान- भगवान तो संसार एवं राग-द्वेष से मुक्त हो गए अतः वे चमत्कार नहीं करते। भक्त की परमात्म भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान के अधिष्ठायक देवी-देवता चमत्कार करते हैं। शंका- चैत्यवंदन आदि भावपूजा सम्पन्न करके पुनः द्रव्यपूजा कर सकते हैं? समाधान- जिनपूजा एक क्रमिक अनुष्ठान है। प्राचीन विधि के अनुसार द्रव्यपूजा सम्पन्न करके भावपूजा करनी चाहिए। तीसरी निसीहि के बाद द्रव्यपूजा का ही त्याग कर दिया जाता है तो फिर वापस द्रव्यपूजा कैसे कर सकते हैं ? यदि कारण विशेष से द्रव्यपूजा में समय हो और समय की अल्पता हो तो अपवाद रूप में भी क्रम परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। मूलतः आरती, आंगी चढ़ाना आदि समस्त द्रव्य क्रियाएँ सम्पन्न करने के बाद ही भावपूजा करनी चाहिए। शंका- मन्दिर में ग्रुप बनाकर सामूहिक भक्तामर आदि के पाठ करना चाहिए या नहीं ?

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