Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 450
________________ 384... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... गति से तैयार हो जाता है। वैसे ही पूजा की एक नियत ड्रेस होने से उसे पहनने के बाद प्रभु पूजा सम्बन्धी विचार ही चलने लगते हैं और व्यक्ति के लिए वही क्रिया प्रमुख हो जाती है। जबकि रोज के धुले हुए वस्त्र पहनने से मन में वैसे भाव उत्पन्न नहीं होते। रोज पहनने के वस्त्रों में अन्य शारीरिक क्रियाएँ एवं घरगृहस्थी के काम भी किए जाते हैं जिससे उनके अशुद्ध होने की संभावना रहती है। अन्य लोगों को भी यह ज्ञान नहीं होता कि हम पूजा करने जा रहे हैं। ऐसे ही अनेक कारणों से जिनपूजा हेतु अलग से ही वस्त्र रखने का विधान है। शंका- आजकल गुरुभगवंत कहते हैं कि पूजा करने के पश्चात मुँह में पानी डालना चाहिए। वहीं प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मुखशुद्धि करने के बाद पूजा करनी चाहिए। इनमें से क्या करना चाहिए? में समाधान- प्राचीन ग्रन्थों में मुखशुद्धि करने का उल्लेख उन श्रावकों के लिए है जो त्रिकाल पूजा करते थे। ऐसे श्रावक प्रात:कालीन पूजा में वासक्षेप पूजा एवं परमात्मा दर्शन कर लेते थे और मध्याह्नकालीन पूजा मुख्य रूप से अष्टप्रकारी करने से पूर्व मुखशुद्धि का विधान था। इसके दो कारण पूजा थे एक मध्याह्न पूजा से पूर्व नाश्ता हो जाता था इस कारण मुखशुद्धि आवश्यक थी। दूसरा मुखशुद्धि करने से मुख की दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है। परंतु वर्तमान में त्रिकाल पूजा का विधान प्रायः समाप्त हो चुका है। एक ही बार में समस्त पूजाएँ सुबह कर ली जाती है। परमात्मा के दर्शन किए बिना श्रावक को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इसी कारण वर्तमान में पूजा करने के बाद ही मुख में पानी डालने का विधान है। यदि संभव हो तो प्रात:काल में दर्शन करके मुखशुद्धि कर लेना चाहिए और फिर पूजा करने जाना चाहिए। शंका- एक बार परमात्मा के दर्शन ही मंगल कर सकता हैं तो फिर त्रिकाल दर्शन की क्या आवश्यकता ? समाधान - जीवन में दो ड्रेस से काम चल सकता है, खाने में सिर्फ रोटी हो तो भी पेट भर सकता है और स्कूल में एक ही कॉपी में नोट किया जा सकता है फिर अधिक क्यों रखते हैं? हमारे मन में जो भी शंकाएँ उठती है वह अध्यात्म जगत के विषय में ही होती है व्यवहार जगत में नहीं। क्योंकि वहाँ हमें सब कुछ आवश्यक प्रतीत होता है।

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