Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 446
________________ 380... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... वाले श्रावक प्रायः उनका प्रयोग करते हैं, वह कितना उचित है? समाधान- कोई द्रव्य तीर्थ स्थल पर मिलने से शुद्ध या निर्दोष नहीं हो जाता। इस प्रकार निर्माल्य द्रव्य की सरेआम बिक्री जैन संघ के लिए विचारणीय विषय है, क्योंकि यदि तीर्थ कमेटी या पेढ़ी इस विषय में जागरूक रहे तो इन दोषों से सहजतया बचा जा सकता है। कई बार गृहस्थ द्वारा इनका उपयोग अपने लिए भी कर लिया जाता है। नव्वाणु एवं चातुर्मास वालों के लिए यदि घर से उतना द्रव्य ले जाना संभव नहीं हो तो Market में पूर्ण जानकारी करके फिर शुद्ध द्रव्य खरीदा जाना चाहिए। शंका- जिनपूजा से आठ कर्मों का नाश कैसे होता है? समाधान- शास्त्रकारों के अनुसार जिनपूजा सम्बन्धी विविध क्रियाएँ आठों कर्मों का क्षय करने में सक्षम है। प्रभु पूजा राग-द्वेष का नाश करती है और राग-द्वेष ही कर्म बंधन का मुख्य हेतु है। अतः राग-द्वेष के क्षय से आठों कर्मों का क्षय स्वयमेव ही हो जाता है। परमात्मा का चैत्यवंदन एवं गुणगान करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय। प्रभु दर्शन करने से दर्शनावरणीय कर्म का क्षय। जिनपूजा में जयणा का पालन करने से अशाता वेदनीय कर्म का क्षय। अरिहंत एवं सिद्धों के गुणों का स्मरण करने से मोहनीय कर्म का क्षय। अक्षय स्थिति युक्त अरिहंत के पूजन एवं आत्मा के अविनाशी गुण के चिंतन से आयुष्य कर्म का क्षय। अनामी प्रभु के नामस्मरण एवं अरिहंत आदि के स्मरण से नाम कर्म का क्षय। अरिहंत परमात्मा की वंदन-पूजा एवं उन्हें स्वामी रूप में स्वीकार करने से गोत्र कर्म का क्षय। विधिपूर्वक पूजन आदि करने एवं प्रभुभक्ति में शक्ति का प्रयोग करने से अन्तराय कर्म का क्षय। इस प्रकार जिनपूजा करने से आठों कर्मों की आंशिक या सर्वांश निर्जरा होती है। __ शंका- 'प्रभु प्रतिमा परमात्म स्वरूप है' ऐसा कहा जाता है किन्तु परमात्मा का जीव एक है और प्रतिमाएँ हजारों है तो फिर एक जीव की हजारोंलाखों प्रतिमाओं में स्थापना या प्रतिष्ठा कैसे संभव है? समाधान- जब परमात्मा की प्रतिमा पर अंजनशलाका का महाविधान संपन्न किया जाता है तो उसमें प्राणों की प्रतिष्ठा होती है जीव की नहीं। परमात्मा तो सिद्ध हो चुके उनका संसार में पुन: लौटना असंभव है। परन्तु तीर्थंकर पर्याय में परमात्मा ने जिन दस प्राणों को धारण किया था उनके जड़

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