Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 411
________________ सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन ...345 9. गुरु भक्ति तत्पर हो एवं उनकी आवश्यकताओं आदि का ध्यान रखता हो। शुश्रुषा आदि आठ गुणों से युक्त हो। ____10. मतिमान- निर्मल बुद्धि वाला अर्थात आग्रह बुद्धि से रहित हो। उपरोक्त सद्गुणों से युक्त श्रावक ही धर्म क्षेत्र की संपदा का Account संभाल सकता है। ऐसा व्यक्ति ही जो जिन आज्ञा के अनुसार धर्म क्षेत्र का लेखा-जोखा रखता हो वही तीर्थंकर नाम कर्म का बंधन करता है। अल्पसंसारी बनकर मोक्ष को प्राप्त करता है। वही इसके विपरीत जो जाने-अनजाने में सात क्षेत्र के द्रव्य का भक्षण करता है उसकी उपेक्षा करता है या रक्षण नहीं करता, दूसरों को देवद्रव्य का नाश करने देता है ऐसा वही वटदार प्रगाढ़ पाप का बंधन करता है। देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, गुरु द्रव्य या साधारण द्रव्य का गलत तरीके से उपयोग करने वाला अथवा गलत हिसाब बताने वाला व्यक्ति नरक आयुष्य का बंधन करता है। अपने संसार परिभ्रमण को अनंतगुणा बढ़ाता है। देवद्रव्य का दुरुप्रयोग करने वाले को दरिद्र कुल में जन्म, गरीबी, कोढ़ आदि रोगों की पीड़ा, अपकीर्ति, दौर्भाग्य, भूख-प्यास आदि अनेक दुखद परिस्थितियों का अनुभव करना पड़ता है अत: पदाधिकारियों एवं श्रावक वर्ग दोनों को ही इस विषय में सावधान हो जाना चाहिए। शंका- देवद्रव्य का संचय करना चाहिए अथवा उसका शीघ्रातिशीघ्र उपयोग करना चाहिए। यदि उपयोग करना हो तो किन क्षेत्रों में इसका प्रयोग हो सकता है? समाधान- प्राचीन विधि एवं उल्लेखों के अनुसार देवद्रव्य का निजी भंडार ही किया जाता था। निजी भंडार अर्थात एक स्थान पर देवद्रव्य की राशि एकत्रित कर उसका वर्धन करना। पूर्वकाल में श्रावक प्रतिदिन सामर्थ्य अनुसार देवद्रव्य में कुछ न कुछ डालकर उसकी अभिवृद्धि करते थे। कुछ ग्रन्थकार उस राशि के नियमित दर्शन करने का उल्लेख भी करते हैं। उसे देखकर श्रावक वर्ग यही भावना करता था कि अभी तो जीर्णोद्धार आदि करवाने हेतु हम समर्थ हैं। जब हमारा सामर्थ्य नहीं होगा या हम नहीं रहेंगे तब परमात्मा के प्रभाव को अक्षुण्ण रखने में यह द्रव्य सहायक बनेगा। परंतु वर्तमान राजकीय परिस्थिति एवं सरकार की धारा-धोरण नीति के कारण देवद्रव्य राशि का संचय करना संभव नहीं है। Goverment के नियम

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