Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 389
________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ...323 अतिशय युक्त प्रतिमा अतीत चौबीसी के नौवें तीर्थंकर के समय में आषाढ़ी श्रावक द्वारा भरवायी गई थी जिसे वर्तमान चौबीसी के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान के समय श्रीकृष्ण द्वारा देवलोक से प्राप्त की गई। अवंती पार्श्वनाथ के नाम से सुप्रसिद्ध श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा काल के प्रभाव से भूमिगत हो गई थी। राजा विक्रमादित्य के समय में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने कल्याण मन्दिर स्तोत्र की रचना करते हुए इसे प्रकट किया था। यह प्रतिमा भगवान महावीर के निर्वाण के 230 वर्ष बाद आर्य सुहस्ति के द्वारा प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा अवन्ती सुकुमाल की स्मृति में उसके पुत्र ने भरवाई थी। भरूच के समडी विहार एवं बंबई के पास अगासी तीर्थ में स्थित मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा मुनिसुव्रत स्वामी के समय में ही बनी हुई है। ओसिया नगर में स्थित महावीर स्वामी की प्रतिमा वीर निर्वाण के 70 वर्ष बाद रत्नप्रभसूरिं द्वारा प्रतिष्ठित की गई है। आन्ध्रप्रदेश स्थित श्री आदोनी पार्श्वनाथ की प्रतिमा 12वीं सदी में निर्मित की गई सिद्ध होती है। गुजरात के कच्छ प्रदेश में रहा हुआ श्री भद्रेश्वर तीर्थ वीर संवत 23 में बनाया ऐसा उल्लेख वहाँ से प्राप्त ताम्रपत्रों में किया गया है। भूकम्प में क्षतिग्रस्त होने के बाद भी कुछ मूर्तियाँ आज भी सुरक्षित है। सम्राट सम्प्रति ने वीर निर्वाण के 290 वर्ष बाद सवा लाख जिनमन्दिर बनवाएं, 36 हजार मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, सवा करोड़ संगमरमर एवं 95 हजार पंचधातु की प्रतिमाएँ भरवाई। जिनमें से कई आज भी विद्यमान है। क्षत्रियकुंड, महुआ एवं नंदी ग्राम में स्थित महावीर स्वामी की प्रतिमा उनके जीवित रहते ही बनाई गई थी। इसी कारण इन्हें जीवित महावीर स्वामी भी कहते हैं। नेमिनाथ भगवान के शासन काल में उनके 2222 वर्ष बाद गोडवाड के आषाढ़ी श्रावक ने तीन प्रतिमाएँ भरवाई थी। जिनमें से एक स्तंभन पार्श्वनाथ की, दूसरी पाटण शहर में है एवं तीसरी चारूप तीर्थ में आज भी विद्यमान है। उस पर निम्न लेख है नमोस्तीर्थकृते तीर्थो, वर्षाद्विक आषाढ़ श्रावको गौडो, कारयेत प्रतिमा त्रयम् ।। चतुष्ट्यो । ये प्रतिमाएँ लगभग 5,86,772 वर्ष पुरानी है। लंकापति रावण के द्वारा

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