________________
जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भो में ...301 उदायन राजा की रानी प्रभावती के ग्रह मंदिर का वर्णन है तथा उन्तीसवें अध्ययन में चैत्यवंदन के फल की चर्चा है। इसी में थुई (स्तुति) मंगल के अन्तर्गत स्थापना को वंदन करने का वर्णन है।
श्री आवश्यक सूत्र में भी जिन प्रतिमा पूजन का विवेचन करते हुए परिमताल नगर के वग्गुर श्रावक द्वारा मल्लिनाथ भगवान का मंदिर बनाने का वर्णन है।25 इसी सूत्र में भरत चक्रवर्ती के द्वारा अष्टापद पर्वत पर सौ भाई के सौ स्तम्भ, चौबीस तीर्थंकरों के जिनमंदिर तथा सभी तीर्थंकरों की उनके वर्ण एवं शरीर प्रमाण के अनुसार प्रतिमाएं स्थापित करने का वर्णन है।26 सिंधु सौवीर के राजा उदयन की पट्टरानी प्रभावती द्वारा अन्त:पुर में चैत्यघर (जिनभवन) बनवाने एवं उसमें त्रिकाल पूजा करने का उल्लेख है। पूजा करते समय कई बार रानी नृत्य करती और राजा स्वयं वीणा वादन करते थे।27 साधुजन कायोत्सर्ग करते वक्त सर्व लोक में रहे हुए श्री अरिहन्त प्रतिमा का कायोत्सर्ग बोधिबीज की प्राप्ति के लिए करे- ऐसा फरमाया है।28।
राजा श्रेणिक के द्वारा प्रतिदिन 108 सोने के जवों से जिनप्रतिमा की पूजा करने संबंधी अनेक विवरण इस सूत्र में प्राप्त होते हैं।29
श्री बृहत्कल्प सूत्र में नागरिकों के अधिकार में जिनप्रतिमा का वर्णन है।30 श्री व्यवहार सूत्र के प्रथम उद्देशक में साधु द्वारा जिनप्रतिमा के समक्ष आलोचना करने का उल्लेख है।31 इसी में सिद्ध परमात्मा की पूजा का फल बताते हुए कहा है कि सिद्ध भगवान की वैयावच्च करने से महानिर्जरा होती है। और मोक्ष की प्राप्ति होती है।32 निशीथ सूत्र में भी जिनप्रतिमा के समक्ष प्रायश्चित्त लेने का विधान है।33 श्री महानिशीथ सूत्र के अनुसार पृथ्वी को जिनमन्दिरों से सुसज्जित करके श्रावक उत्कृष्ट अच्युत बारहवें देवलोक तक जा सकता है।34
श्री जीतकल्पसूत्र में कहा गया है कि यदि साधु-साध्वी जिनमन्दिर के दर्शन नहीं करने जाए तो प्रायश्चित्त आता है।35
श्री नन्दीसूत्र में विशाला नगरी स्थित मुनिसुव्रत तीर्थंकर के स्तूप को महाप्रभावी माना है।36 __श्री अनुयोगद्वार सूत्र में चार निक्षेपों की चर्चा करते हुए जिन प्रतिमा को स्थापना निक्षेप के रूप में स्वीकार किया है।37
श्री महाकल्पसूत्र38 में भगवान महावीर एवं गौतम के संवाद में बताया है कि साधु या पौषधधारी श्रावक को जिनमंदिर प्रतिदिन जाना चाहिए। यदि न