Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 376
________________ 310... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... कुमारपाल प्रबोध में देवपाल के दृष्टांत के द्वारा जिनमूर्ति एवं जिनपूजा के फल का वर्णन किया गया है। देवपाल गोपालक को गाय चराते - चराते जमीन में से जिन प्रतिमा मिलती है। वह उस मूर्ति को छोटा चबूतरा बनाकर वहाँ विराजमान करता है। कालान्तर में उस प्रतिमा की नित्यपूजा-दर्शन आदि नियम से करने लगा। हमेशा नदी के पास उगे हुए कल्हार, सिन्दुवार आदि के पुष्प चढ़ाना एवं पर्व दिवसों में नदी के जल से मूर्ति को स्नान भी करवाता है। इससे प्रसन्न होकर मूर्ति के अधिनायक देव ने उसे समीपवर्ती नगर का राजा बना दिया। गोपालक राजा होने के बाद भी लोग उसकी आज्ञा को नहीं मानते थे अत: उसने कपूर, अगुरु धूप, सुगन्धी पुष्प आदि से पूजा कर आज्ञैश्वर्य भी प्राप्त किया। 78 इसी ग्रंथ में कुमारपाल महाराजा द्वारा निर्मित 'कुमार विहारे' की प्रतिष्ठा के समय अन्य श्रेष्ठी जनों के द्वारा पट्टांशुक, सुवर्णाभूषण से जिनपूजा एवं कनक कमलों द्वारा गुरु महाराज के चरण युगल की पूजा करने का उल्लेख है। 79 आचार्य देवेन्द्रसूरि ने श्राद्धदिनकृत्य में पूर्व आचार्यों का समर्थन करते हुए श्रावक को विधि पूर्वक स्नान करके श्वेत वस्त्र एवं मुखकोश धारण कर गृह मंदिर में प्रतिमा प्रमार्जन करने तथा उत्तम वर्ण एवं सुगंध से युक्त श्रेष्ठ पुष्पों द्वारा अनेक प्रकार की रचनाओं से युक्त जिनपूजा करने को कहा है। 80 देववन्दन भाष्य में अंग, अग्र एवं भावपूजा के रूप में पुष्प, नैवेद्य एवं स्तुति इन तीन प्रकारों से पूजा करने का निर्देश है। इसके अतिरिक्त पंचोपचारी, अष्टोपचारी और सर्वोपचारी पूजा का भी उल्लेख है। 81 अनंतनाथ चरित्र में भी अष्ट द्रव्यों से जिनपूजा करने का उल्लेख है। 82 पूजा प्रकाश में भी श्राद्धदिनकृत्य का ही समर्थन करते हुए विशेष रूप से सुगन्धित जल द्वारा जिनस्नान, गोशीर्ष चन्दन आदि से विलेपन पूजा, पुष्प, सुगन्धी गन्ध, धूप, दीपक, अक्षत विविध प्रकार के फल एवं जल पात्रों से पूजा करने का वर्णन है।83 अष्टप्रकारी पूजा के बाद निर्दिष्ट मुद्राविधिपूर्वक वीतराग परमात्मा के सम्मुख चैत्यवंदन करना चाहिए। आचार्य जिनप्रभसूरि ने देवपूजाविधि में जल द्वारा प्रक्षाल करने के बाद सरस सुगन्धी चन्दन से जिनेश्वर परमात्मा के दोनों घुटने, दोनों कंधे एवं ललाट इन पाँच अंगों अथवा हृदय के साथ छ: अंगों की पूजा करने का प्ररूपण किया है। 84

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