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316... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पूजाएँ विभिन्न फलों को देने वाली है।114
जिनप्रतिमा की जलधारा से अर्घ्यपूजा एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री की श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए लिखा है कि जलधारा देने योग्य झारी चंद्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल रत्नों से जड़ी हुई हो, मोती, मंगा, सोना, प्रवाल मणि आदि से जडित कंठ वाली हो और उसमें शास्त्रोक्त पुष्पों, कमल आदि की रज से पीत एवं सुगंधित निर्मल जल भरा हो उसके द्वारा जिनप्रतिमा के आगे तीन धाराएँ दें।115
श्री भगवद्देवसंधि विरचित श्रावकाचार में जिन प्रतिमा की नित्य स्नान न करवाने के दुष्प्रभाव बताते हुए कहा है- जो व्यक्ति नित्य पूजा विधान में तीन जगत के स्वामी की एक कलश से भी पूजा नहीं करता वह कलह, कुल नाश आदि को प्राप्त करता है।116 ___फल पूजा की चर्चा करते हुए दिगम्बर आचार्यों जम्बीर (बिजोरा) नारंगी,पके हुए जामुन आदि रसीले उत्तम फलों से सत्य आदि पाँच महाव्रतों, तीन गुप्तियों और पाँच समितियों की मैं पूजा करता हूँ।117
स्त्री द्वारा जिनप्रतिमा की अष्टप्रकारी पूजा विधानों का उल्लेख करते हुए श्रीपाल चरित्र में लिखा है- आठ दिनों तक जगत के सारभूत जल, चंदन, फूल, अक्षत, धूप, दीपक, नैवेद्य एवं फल इन आठ प्रकार के द्रव्यों से पूजा करके व्याधि निवारण करने वाले श्री सिद्धचक्र से स्पर्शित जल, चंदन आदि से स्पर्श करवाओ, अपने पति (श्रीपाल) जिससे उसका रोग दूर हो जाएगा। (ऐसा महामुनि मयणासुंदरी से कहते हैं।)118 ___षटकर्मोपदेशमाला में भी रानी श्री के द्वारा सात दिनों तक अभिषेक तथा त्रिसंध्या में जिनेन्द्र देव की चन्दन, अगर, कपूर आदि सुगन्धी द्रव्यों से विलेपन करने का उल्लेख है। श्री जिनेश्वर देव की दीपक पूजा करने से मोह और अन्तराय दोनों कर्म नष्ट हो जाते हैं।119
विध पूजा प्रकरण में नाटक से भक्तिपूजा का वर्णन करते हुए कहा हैक्षोभ को प्राप्त हुए समुद्र के गरजारव के समान श्रेष्ठ भेरी, करद, काहल, जय घंटा, शंख आदि वाद्यों के गुलगुल शब्द हो रहे हो; तथा तिविल, कांसी, ताल, मंजीर आदि बाजों से झम-झम शब्द हो रहे हो, एवं पटह, ढोल, मृदंग आदि वाजिंत्रों के शब्दों से एक धुन मच रही हो। इस प्रकार से नाटक पूजा करें।120