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जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 315
उसे जिनेन्द्र के चरणों में चढ़ाकर नमस्कार किया और वापिस अपने घर चला गया। 108
पुण्याश्रव कथाकोष में भी मेंढक का दृष्टांत बताते हुए कहा गया है कि पुष्प चढ़ाने के भावों से समवसरण में जाते हुए मेंढक की हाथी के पैरों के नीचे आने से मृत्यु होने पर भी उसको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। 109 ऐसा ही दृष्टांत श्वेताम्बर ग्रन्थों में नन्द मणियार के दृष्टांत रूप में मिलता है।
यद्यपि वर्तमान की दिगम्बर परम्परा में आंगी आदि का प्रचलन नहीं है किन्तु प्राचीन शास्त्रों में तद्विषयक उल्लेख मिलते हैं। सिंहनन्दी ने मुकुट सप्तमी व्रत की चर्चा करते हुए कहा है कि श्रावण शुक्ला सप्तमी को आदिनाथ अथवा पार्श्वनाथ प्रभु के कण्ठ में माला और सिर पर मुकुट पहनाकर पूजा एवं उपवास करना- यह शीर्ष मुकुट सप्तमी व्रत है। श्री वीतराग प्रभु के गले में माला और सिर पर मुकुट पहनाने से वीतरागता में हानि नहीं होती । कन्याओं के द्वारा वैधव्य निवारण के लिए यह तप किया जाता है। यह जिनागमोक्त विधि है । जो कोई इस विधि की निन्दा करता है वह जिनागम द्रोही एवं जिनाज्ञालोपी है। इसलिए इस विधि में संदेह नहीं करना चाहिए । सकल कीर्ति आचार्य ने अपने कथाकोष में तथा श्रुतसागर, दामोदर, देवनन्दी और अभद्र आदि ने भी इस विधि का निरूपण किया है अतः यह समीचीन विधि होनी चाहिए। 1
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एक अन्य वर्णन में पार्श्वनाथ भगवान के स्थान पर मुनिसुव्रत स्वामी का उल्लेख है।111 व्रत कथाकोष में इस व्रत का विषय वर्णन करते हुए आर्यिका श्रेष्ठी पुत्री से कहती है कि इस व्रत को करने से इहलोक - परलोक सम्बन्धी दुर्लभ सुखों की प्राप्ति होती है। श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन अर्हद् भगवान की मूर्ति को भक्ति पूर्वक स्नान करवाकर अष्ट द्रव्यों से जिनेन्द्र देव की पूजा करनी चाहिए। मुकुट को फूलों से सजाकर परमात्मा के मस्तक पर तथा कंठ में पुष्पमाला पहनानी चाहिए। 112 ज्ञानपीठ पूजांजलि में जिनप्रतिमा के जलाभिषेक का वर्णन करते हुए लिखा है कि भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक चौबीस तीर्थंकरों का मुनि आर्यिका श्रावक एवं श्राविकाओं के समस्त कर्मों का क्षय करने के लिए मैं जलाभिषेक करता हूँ। 113
इसी प्रकार घी, दूध, दही, इक्षुरस, सर्वौषधि, कर्पूर, चंदन, केसर-सुगन्धी जल एवं निर्मल स्वच्छ जल से जिनप्रतिमा को स्नान करवाने का वर्णन है । यह