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280... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
अष्टमंगल पूजनीय है या नहीं?
अष्टमंगल एक पवित्र प्रतीक है जिनका मात्र आलेखन ही किया जाता है। श्राद्धदिनकृत्य के अनुसार पहले अक्षतों के द्वारा अष्टमंगल का आलेखन करने के बाद पाट के ऊपरी दो कोनों में थापे (छापे) देकर फूलों से बंधाना चाहिए | 23 अष्टमंगल की पूजा करने का विधान कहीं भी देखने में नहीं आया है। जिस प्रकार तीर्थंकर की माता को आने वाले स्वप्न मंगलकारी हैं वैसे ही अष्टमंगल मंगलकारी है। परंतु जैसे चौदह सपनों की पूजा नहीं की जाती वैसे ही अष्टमंगल भी पूजनीय नहीं है।
विविध परम्पराओं में अष्टमंगल की मान्यता
किसी न किसी रूप में मंगल की मान्यता प्रत्येक धर्म में रही है। कई संप्रदायों में जैन धर्म के समान ही मांगिलक चिह्नों की संख्या आठ मानी गई है। बौद्ध परम्परा में मान्य अष्टमंगल के नाम ये हैं- 1. शंख 2. श्रीवत्स 3. मीन युगल 4. कमल 5. छत्र 6. कलश 7. धर्मचक्र और 8. विजय पताका। उत्तर भारतीय परम्परा में मान्य अष्टमंगल के नाम निम्नवत है- 1. शेर 2. बैल 3. हाथी 4. जलपात्र या जवाहरात से भरा जहाज 5. चंवर 6. ध्वजा 7. तुरही और 8 दीपक।
दक्षिण भारत में मान्य अष्टमंगल के नाम इस प्रकार हैं- 1. चँवर 2. फूलदान 3. दर्पण 4. अंकुश 5. ढोल 6. दीपक 7. ध्वजा और 8. मीन युगल । जैन धर्म की दिगम्बर परम्परा में मान्य अष्टमंगल के नाम निम्न प्रकार है1. छत्र 2. कलश 3. चँवर 4. झारी 5. धर्मध्वजा 6. पंख (प्रशंसक ) 7. स्वस्तिक और 8 दर्पण |
कहीं-कहीं स्वस्तिक के स्थान पर भद्रासन का उल्लेख है ।
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में उल्लेखित अष्टमंगल के नाम अग्रलिखित है- 1. स्वस्तिक 2. श्रीवत्स 3. नंद्यावर्त 4. वर्धमानक 5. कलश 6. भद्रासन 7. मीनयुगल और 8. दर्पण
अष्टमंगल का प्रतीकात्मक स्वरूप एवं उनके रहस्य
जैन धर्म में स्वस्तिक का स्थान
स्वस्तिक एक शुभ चिह्न है । मात्र भारतीय सभ्यता में ही नहीं अपितु विश्व