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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...279 अच्छी किस्मत का प्रतीक माना गया है तथा शाक्यमुनि बौद्ध के आत्मज्ञान प्राप्ति के प्रतीक के रूप में इन्हें देवताओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया था।
जैन मान्यता अनुसार तीर्थंकरों के केवलज्ञान प्राप्ति के बाद ये अष्टमंगल सदा उनके साथ रहते हैं। परमात्मा के प्राकृतिक स्वागतकर्ता- अष्टमंगल
जैसा कि अष्टमंगल नाम से ही ज्ञात होता है, ये आठ चिह्न मंगल के प्रतीक हैं। ये चिह्न विशेष रूप से देवी-देवताओं के साथ अथवा आत्मज्ञान को प्राप्त करने वाले विशिष्ट धर्म प्रवर्तकों के सम्मान स्वरूप सदा उनके साथ रहते हैं। जैन ग्रन्थकारों के अनुसार तीर्थंकर परमात्मा 34 अतिशय से युक्त होते हैं जिनमें से कुछ देवकृत, कुछ कर्मक्षय कृत और कुछ मूल अतिशय रूप होते हैं। यह सब उनके पुण्य एवं विश्व में सर्वोत्कृष्ट होने के सूचक हैं। इसी प्रकार अष्टमंगल भी परमात्मा के विश्वमंगलकारी होने के बोधक हैं। ___जिस प्रकार लोक व्यवहार में गुरुजन, नई दुल्हन, अतिथि आदि का स्वागत मांगलिक वस्तु जैसे कि कलश आदि के द्वारा किया जाता है वैसे ही प्रकृति परमात्मा का स्वागत सर्वोत्कृष्ट मंगल प्रतीक रूप आठ मांगलिक चिह्नों से करती है। __ ये आठ जहाँ भी रहते हैं वहाँ पर किसी भी प्रकार का उपद्रव, महामारी आदि नहीं होते। अतिवृष्टि, महामारी, अकाल आदि प्राकृतिक आपदाएँ भी वहाँ पर नहीं होतीं। इसी कारण उन्हें अष्टमंगल कहा गया है। अष्टमंगल की रचना कब और कैसे? __ जैनाचार्यों के अनुसार तीर्थंकर परमात्मा के विचरण काल में अष्टमंगल सदा उनके आगे चलते हैं। इसीलिए रथयात्रा आदि के अवसर पर परमात्मा के साथ अष्टमंगल पट्ट भी बाहर लाया जाता है। पूर्वकाल में अखंड अक्षतों के द्वारा अष्टमंगल का आलेखन परमात्मा के समक्ष किया जाता था।22 आलेखन विधि को सर्वजन सुगम बनाने हेतु लकड़ी के पट्टों पर उन आकृतियों को उकेरा जाने लगा। वर्तमान में इनका स्थान पीतल की छोटी पाटलियों ने ले लिया है। यह मूल गर्भगृह में परमात्मा के समक्ष रखी जाती है। वर्तमान में इनके अक्षत आलेखन की विधि प्राय: नहींवत ही रह गई है।