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288... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... प्रतीक माना गया है। इसे शुभ शकुन मानकर प्रत्येक मांगलिक या शुभ प्रसंग पर महिलाओं द्वारा धारण किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान, पूजन आदि में भी यह प्रयुक्त होता है। यह सौभाग्य वृद्धि कारक माना जाता है तथा आत्मा की पूर्ण अवस्था प्राप्त कर आत्मिक ऋद्धि एवं समृद्धि की प्रेरणा देता है।
मत्स्य को शोभा, सफलता, सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। मीन सच्चे एवं निष्कपट प्रेम का सूचक है। यह हृदय को निश्छल एवं निष्कपट बनाने की प्रेरणा देता है। इसी के साथ संसार के प्रवाह के विरुद्ध जाकर अनादि काल से कर्म युक्त आत्मा को कर्म रहित बनाने की प्रेरणा भी इसी के द्वारा प्राप्त होती है। मीनयुगल का आलेखन करते हुए उसके विशिष्ट गुणों को अपनाने के भाव प्रकट किए जाते हैं।
समाहारत: यह आठों ही चिह्न आत्मा को निरंतर बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही नकारात्मकता का हरण कर सकारात्मक, ऊर्जावान वातावरण का निर्माण करते हैं। ___ आज का युग तार्किक युग है। युवा वर्ग को प्रत्येक कार्य के पीछे एक सार्थक कारण चाहिए। वे मात्र परम्परा अनुकरण, श्रद्धा या जिन आज्ञा समझकर किसी भी कार्य को करना नहीं चाहते। इस अश्रद्धावृत्ति का प्रमुख कारण है आज की पाश्चात्य जीवन शैली एवं भौतिक विचारधारा तथा दूसरा कारण है धार्मिक क्रियाओं के प्रति घटता रुझान एवं अज्ञानता। इस कारण से उन क्रियाओं के प्रति श्रद्धाभाव उत्पन्न ही नहीं होते। इसी मानसिकता को ध्यान में रखते हुए जिनपूजा सम्बन्धी प्रत्येक विधान का हेतु एवं उसके रहस्यात्मक पक्षों का इस अध्याय में विवेचन किया गया है जिससे पाठक वर्ग अवश्य लाभान्वित होगा। सन्दर्भ-सूची 1. एक्कंपि उदगबिंदू जह, पक्खित्तं महासमुद्दम्मि । _जायइ अक्खमेवं, पूया जिणगुणसमुद्देसु ॥
पंचाशक प्रकरण, 4/47 2. इति जिनपूजा धन्यः श्रुण्वन्, कुर्वंस्तदोचितां नियमात् । भवविरहकारणं खलु, सदनुष्ठानं द्रुतं लभते ॥
षोडशक प्रकरण, 9/16