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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...273 करना होता है किन्तु उसके लिए एक विशेष ड्रेस, कर्नल आदि बड़े अधिकारियों का सम्मान, माचिंग आदि की आवश्यकता क्यों? इन नियमों से सैनिक के बाह्य जीवन में ही नहीं अपितु अंतर मानस में भी अनुशासन के संस्कार घर कर जाते हैं, जो उसे युद्ध की कठिन परिस्थितियों में सफलता दिलाने में सहायक बनते हैं।
इसी प्रकार एक साधक के जीवन में भावों की जागृति, स्थिरता एवं उनकी निरंतर अनुभूति हेतु नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक है तथा जिनके जीवन में नियम एवं अनुशासन का पालन होता है वे ही दूसरों के लिए आदर्श बन सकते हैं। जीवन उत्कर्ष का मुख्य आधार नित्य पूजा
परमात्मा अथवा अपने इष्टदेव की नियमत: प्रतिदिन पूजा करना नित्य पूजा कहलाता है। ___ हमारे जीवन में जिनका भी उपकार हो, जिन्होंने हमें सन्मार्ग दिखाया हो उनके उपकारों का हम सदैव स्मरण करते हैं। इन विचारों से जीवन में लघुता, नम्रता, कृतज्ञता आदि गुणों का विकास होता है। अन्यों को सहायता करने की वृत्ति उत्पन्न होती है। परमात्मा का हमारे जीवन पर विशेष उपकार है। वे जगत जीवों के प्रति समभाव रखते हुए कल्याण का मार्ग बताते हैं। सच्चा आदर्श जीवन के लिए प्रस्तुत करते हैं। स्वयं मोक्ष को प्राप्त कर अन्यों को मोक्ष मार्ग की प्रेरणा देते हैं। मानव को मानवता का मार्ग बताते हैं। उन्हीं को देखकर प्रत्येक आत्मा को परमात्म लक्ष्य की प्राप्ति होती है। ऐसे परम उपकारी वीतराग परमात्मा के उपकार स्मरण हेतु उनके प्रति कृतज्ञता एवं अहोभाव अभिव्यक्त करने हेतु तथा उनके गुणों को स्वयं के जीवन में अंगीकार करने हेतु परमात्मा की पूजा की जाती है। यदि प्रभु की पूजा आदि नियमित रूप से नहीं की जाए तो मानव इन सबको क्षणै:-क्षणैः विस्मृत कर सकता है। यदि जीवन को शुभता के मार्ग पर अग्रसर रखना हो एवं उच्च स्थिति को उपलब्ध करना हो तो परमात्मा आदि जिनके भी प्रति हमारे मन में श्रद्धा एवं कृतज्ञ भाव हो उनका नित्य स्मरण आवश्यक है। ऐसे परमात्मा आदि के चित्र, मूर्ति आदि की प्रतिदिन नियम से पूजा करना ही नित्यपूजा है।
इसे करने से भक्त और भगवान का नित्य मिलन होता है। परमात्मा के