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मन्दिर जाने से पहले सावधान ...203 भोजी, मांसाहारी, मदिरा सेवी कर्मचारियों को मंदिरों में नहीं रखना चाहिए। मंदिरों में प्रयुक्त होने वाले कीमती सामान ट्रस्टियों को अपने अधिकार में रखना चाहिए। ___मंदिरों में पूजन पद्धति आदि के विषय में किसी परम्परा विशेष का आग्रह पदाधिकारियों को नहीं रखना चाहिए। इस प्रकार मंदिर के साथ संघ-समाज को योग्य दिशा मिले, किसी के मन में जिन धर्म के प्रति हीन भाव उत्पन्न न हो उस तरह पदाधिकारियों को वैर-विरोध का त्याग करते हुए विवेक पूर्वक समस्त कार्य करने चाहिए। जिनपूजा में वरख का प्रयोग करना चाहिए या नहीं?
जैन मन्दिरों में आंगी आदि हेतु वरख का प्रयोग पूर्व समय से होता रहा है। भारतीय परम्परा में मिठाईयों को सजाने एवं पूजा आदि में भी इसका प्रयोग बहुताययात में होता है। ___ वरख सोने या चाँदी की एक पतली पन्नी होती है। सोना और चाँदी उत्तम कोटि के एवं शुद्धिकारक द्रव्य माने जाते हैं। इसी कारण आंगी रचाने में इनका प्रयोग होता है।
कई लोगों का मानना है कि वरख निर्माण एक हिंसक प्रवृत्ति है। वरख के निर्माण में बछड़ों के ताजे चमड़े का प्रयोग होता है अत: अहिंसा प्रधान जैन धर्म में इसका प्रयोग कैसे उचित हो सकता है?
यह बात सत्य है कि किसी समय में वरख का निर्माण इस प्रक्रिया से होता था। 'इलस्ट्रेटेड विकली ऑफ इंडिया' में मेनका गांधी एवं कई अन्य शोधकर्ताओं के अनुसार वरख एक जानवर स्रोत नहीं है। परन्तु बैल की आंत के एक महत्त्वपूर्ण अंग से इसका निर्माण किया जाता है, जो कि कसाई खाने से प्राप्त होता है। बैल की आंत के इस हिस्से को बड़ी निर्ममता पूर्वक वरख बनाने हेतु ही निकाला जाता है।
चाँदी के पतरे से पतली पन्नी बनाने हेतु चमड़े के बीच पत्तरे को रखकर आठ घंटों तक उसे हथौड़े से पीटा जाता है ताकि वह अपेक्षित मोटाई को प्राप्त कर सके। उसके बाद उस पतली सी पन्नी को उतारकर कागज के टुकड़ों के बीच रखकर बेचा जाता है। यद्यपि चमड़े का प्रयोग धोकर किया जाता है परन्तु कहीं न कहीं खून का अंश आदि उसमें लगे रहने की पूर्ण संभावना रहती है और वह