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अध्याय-6 पूजा उपकरणों का संक्षिप्त परिचय एवं
ऐतिहासिक विकास क्रम किसी भी कार्य की सिद्धि हेतु उसमें प्रयुक्त द्रव्य सामग्री का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि साधनों की अनुपस्थिति में साधना की सम्पूर्णता संभव नहीं है और उसके अभाव में कार्य की सफलता नामुमकिन है। प्रत्येक कार्य के लिए कुछ आवश्यक साधन-सामग्री का विधान तत्सम्बन्धी ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। जैसे सामायिक की साधना करने हेतु आसन, चरवला, मुँहपत्ति को आवश्यक माना है। पंच महाव्रतधारी साधुओं के लिए रजोहरण, कंबली, आसन, पात्र आदि कुछ आवश्यक साधन माने गए हैं। खाना बनाने हेतु चुला या stove, gas cylinder, तवा, बर्तन आदि कुछ आवश्यक उपकरण माने गए हैं। इसी प्रकार जिन मन्दिर एवं जिनपूजा उपयोगी सामग्री का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त होता है। यद्यपि आगमकाल से अब तक इसमें बहुत से परिवर्तन आए हैं, कई साधनों का प्रयोग बढ़ गया है तो कई उपकरण अब मात्र ग्रन्थों का विषय बनकर रह गए हैं। इनमें से कई उपकरणों से हम परिचित हैं तो कई उपकरण ऐसे हैं जिनका हम नित्य प्रयोग तो करते हैं किन्तु उसके स्वरूप के विषय में अनभिज्ञ है। इन्हीं पहलुओं को ध्यान में रखकर इस अध्याय में जिनपूजा सम्बन्धी उपकरणों का स्वरूप एवं उनकी ऐतिहासिकता के विषय में अनुशीलन किया जा रहा है। पूजा उपकरणों का स्वरूप एवं उनका प्रयोजन ___ जिनपूजन में सहयोगी सामग्री को हम सामान्य रूप से पूजा उपकरण नाम से जानते हैं। उपकरण यह एक जैन पारिभाषिक शब्द है। धर्मसाधना से जुड़े क्रियानुष्ठानों में आवश्यक सामग्री उपकरण कहलाती है। इनमें भी जो वस्तु मात्र एक बार ही उपयोग की जा सकती है वह उपादान कहलाती है तथा जिनका उपयोग बार-बार किया जाए वे उपकरण कहलाते हैं। वर्तमान प्रचलित अनेकश: