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212... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... level होने से भी इसे त्रिगड़ा कहा जाता है। कई स्थानों पर जहाँ त्रिगड़ा नहीं होता वहाँ एक के ऊपर एक ऐसे तीन चौकियाँ रखकर भी इसकी स्थानपूर्ति की जाती है।
चन्दरवा-पुंठिया- वेलवेट आदि उत्तम Quality के वस्त्रों पर हाथ की कढ़ाई या सोने-चाँदी के तार आदि द्वारा जिनेश्वर परमात्मा के जीवन दृष्टांतों का आलेखन किया हुआ वस्त्र जो त्रिगड़े आदि के ऊपर या प्रवचन करते समय गुरु महाराज के ऊर्ध्व एवं पृष्ठ भाग पर लगाया जाता है उसे चन्दरवा-पुंठिया कहते हैं। कहीं-कहीं पर इसे पिछवाई भी कहा जाता है।
शंख- एक बड़ा घोंघे की तरह का बाजा या वाद्य उपकरण शंख कहलाता है। आरती करते समय, स्नात्रपूजा के दौरान एवं आने वाले दर्शनार्थियों द्वारा भी इसका नाद करवाया जाता है। शंखनाद से वातावरण की पवित्रता बढ़ती है।
सरपोस- पीतल आदि से निर्मित छिद्रयुक्त ढक्कन सरपोस कहलाता है। यह आरती को ढंकने के लिए प्रयुक्त होता है।
इसी प्रकार के अन्य छोटे-बड़े सामान भी जिनमन्दिर में प्रयोग किए जाते हैं जैसे कि पीतल की बाल्टी, घड़े, तिलक लगाने हेतु दर्पण, केशर आदि लेने का चम्मच, बाजोट, पाटा आदि जो जिनमन्दिर की व्यवस्था या जिनपूजा में सहयोगी बनते हैं। मन्दिर व्यवस्थापकों को इन सभी सामग्रियों की व्यवस्था का ध्यान रखना चाहिए। जिनपूजा उपकरण आगम काल से अब तक
प्रत्येक क्रिया के विविध पक्ष होते हैं। उन सभी के समन्वय से ही वह क्रिया पूर्णता को प्राप्त करती है। इन्हीं में से एक विशिष्ट पहलू है क्रिया में उपयोगी साधन-सामग्री। हर कार्य में कुछ मुख्य साधन प्रयुक्त किए जाते हैं जो उस क्रिया के शिखर तक पहुँचने में मुख्य सोपान होते हैं। जैसे Doctor के लिए Operation के औजार, Injection आदि। Photographer के लिए Camera, Tailor के लिए कैंची, सुई, धागा इत्यादि। इन साधनों के बिना कुशल से कुशल व्यक्ति भी तत्सम्बन्धी क्रियाओं को सम्पन्न नहीं कर सकता। इसी प्रकार धर्म साधना से जुड़े क्रियानुष्ठानों में कई आवश्यक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। जैन पारिभाषिक शब्दावली में उन्हें उपकरण कहा गया है। जिनपूजा