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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं ... ... 227
जिनपूजा के अचिंत्य प्रभाव से कई बार शारीरिक एवं मानसिक रोगों का उपशमन होते हुए भी देखा गया है। यथार्थत: जब हमारे भीतर में श्रद्धा प्रस्फुटित होती है तब हमारी अन्त: स्रावी ग्रन्थियों से ऐसे स्राव निकलते हैं जो शरीरस्थ रसायनों के असंतुलन एवं मानसिक अस्थिरता का निवारण करते हैं।
परमात्मा का दर्शन-पूजन करने से जीव को परमात्म शक्ति का अवबोध होता है, जिससे आत्महीनता, मनोबल या आत्मविश्वास की कमी आदि दोषों का शमन होता है। अतः अस्त-व्यस्त जीवन व्यवस्था को व्यवस्थित करने हेतु जिनपूजा एक आवश्यक चरण है।
आध्यात्मिक उत्कर्ष में जिनपूजा की सदाशयता
यदि आध्यात्मिक दृष्टि से जिनपूजा की महत्ता के विषय में चिंतन किया जाए तो इसका मुख्य उद्देश्य ही पूजक को पूज्यता प्राप्त करवाना है, आत्मा को परमात्मा बनाना है। चित्त की प्रसन्नता के साथ की गई भगवान की पूजा हमें अनेक गुणा लाभ की प्राप्ति करवाती है। जैसे पाँच कोड़ी से खरीदे पुष्पों के द्वारा भाव से पूजा करने वाला पल्लिपति जयताक अगले भव में अठारह देश का अधिपति कुमारपाल महाराजा बना। गीतार्थ आचार्यों के अनुसार
नरिंद देवे सर पुइयाणं पूयं कुणंतो जिणं चेइयाण दव्वेण भावेण सुहं चिई
नरेन्द्र एवं देवेन्द्रों से पूजित जिनेश्वर भगवान की सुगंधित द्रव्य एवं भाव से जो पूजा करते हैं, उनके मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का नाश होता है। महानिशीथ सूत्र के अनुसार चैत्यालय में एकाग्रता से भावसहित स्तुति, स्तवन, पूजा, अर्चना करने वाला निश्चित रूप से मनोवांछित फल प्राप्त करता
है।
देवाधिदेव वीतराग परमात्मा के दर्शन - वन्दन-पूजन से स्वयं का आत्मदर्शन होता है। जैसे ज्योति से ज्योति प्रकट होती है । उसी तरह जिन दर्शन एवं पूजन से यह आत्मा परमात्मा बनती है। इसी के साथ श्रद्धा, आस्था, भक्ति एवं समर्पण से की गई परमात्मा की पूजा दुःख एवं दरिद्रता का नाश करते हुए समस्त सुखों की प्राप्ति करवाती है।
परमात्मा की अक्षत पूजा करने वाले तोता-मैना के युगल को भावपूर्वक पूजा करने से देवलोक की प्राप्ति हुई । पार्श्वनाथ भगवान की मनोयोग पूर्वक पूजा