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234... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
दिशा में उदित होता है तथा उदित होते ही सम्पूर्ण जगत को स्फूर्ति, ऊर्जा एवं प्रकाश प्रदान करता है। सीमंधर स्वामी भी पूर्व दिशा में ही माने जाते हैं। पूर्व दिशा में मुख करने से उदय अर्थात विकास या आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त होती है। पूर्व दिशा को जहाँ विकास और गति का सूचक माना है वहीं उत्तर दिशा स्थिरता की प्रेरक है। उत्तर दिशा मुक्ति पथ की दिशा है। जन्म मरण से मुक्त होकर आत्म स्वभाव में स्थिर रहना यही जीव का परमलक्ष्य है।
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पूजा आदि शुभ कार्य आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से किए जाते हैं। पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख रहने से अध्यात्म मार्ग में विकास एवं भावों की स्थिरता प्राप्त होती है। अतः मंगल कार्यों की स्थिरता हेतु इन्हीं दिशाओं का विधान किया गया है।
लौकिक परिप्रेक्ष्य में तिलक की महत्ता
सामान्यतया तिलक को सौभाग्य का प्रतीक माना गया है । पूर्वकाल में इसे सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में भी स्थान प्राप्त था। यह जिनाज्ञा एवं परमात्मा के प्रति निष्ठा अभिव्यक्त करने का भी एक साधन है । किसी व्यक्ति के ललाट पर तिलक देखते ही उसके जैन होने का निश्चय हो जाता है । जिस प्रकार किसी भी कंपनी का एक Logo या Symbol उसे सबसे अलग एक विशिष्ट पहचान देता है वैसे ही चंदन का तिलक लाखों की भीड़ में भी एक जैन श्रावक का अलग अस्तित्व बताता है। कई बार इसी तिलक की वजह से अनेक समस्याओं से रक्षण हो जाता है। समाज में प्राय: जैनों को नैतिक, सच्चा एवं सद्विचारयुक्त माना जाता है। जैनत्व के गौरव को अभिव्यक्त करने का यह अनुपम माध्यम है।
जब किसी व्यक्ति का राज्याभिषेक किया जाता है तब राजतिलक के द्वारा ही उसे राजा होने का एहसास करवाया जाता है। इसी प्रकार मस्तक पर लगा हुआ तिलक व्यक्ति को हर समय उसके जैनत्व होने का बोध करवाता है ।
समाज में भी स्त्री को योग्य पति मिलने पर उस हर्ष की अभिव्यक्ति रूप वह ललाट पर टीका लगाती है। भक्ति योग में विश्वास रखने वाले लोग भगवान को ही अपना स्वामी या प्रीतम मानते हैं। अतः परमात्मा प्राप्ति के हर्ष को अभिव्यक्त करने के रूप में भक्त भी अपने मस्तक पर तिलक लगाता है। इसके द्वारा वह अपने आप को परमात्म के चरणों में समर्पित कर देता है। इसकी छाप के रूप में भी तिलक लगाता है।