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228... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... करने वाला हाथी मरकर कलिकुंड तीर्थ का अधिष्ठायक देव बना। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि अहोभाव पूर्वक परमात्मा की पूजा-भक्ति आदि करने से इहलौकिक एवं पारलौकिक सुख-सम्पत्ति एवं शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों के अनुसार__दर्शनाद् दुरित ध्वंसी, वन्दनात वांछित प्रदः ।
पूजनात पूजकः श्रीणां, जिनः साक्षात सुरद्रुमः ।। अर्थात जिनेश्वर भगवान के दर्शन मात्र से ही सभी पापों का क्षय हो जाता है। वन्दन करने से वांछित की प्राप्ति होती है, प्रतिदिन अष्टप्रकारी पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा साक्षात जिनेश्वर परमात्मा का दर्शन कल्पवृक्ष के समान सकल मनोवांछित को पूर्ण करने वाला है। परमात्मा के दर्शन-पूजन करते समय मन-वचन-काया के समस्त विषय-विकारों का त्याग होने से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन होता है, जिससे शक्तियों का केंद्रीकरण होता है। खाद्य पदार्थों का त्याग होने से तप होता है। और तप ही एकमात्र कर्म निर्जरा का साधन है।
__ आज की व्यस्त जीवनशैली में जिनपूजा के माध्यम से सांसारिक झंझटों से छुटकारा प्राप्त कर आत्मिक शान्ति के अप्रतिम क्षण प्राप्त किए जा सकते हैं। जिनदर्शन एवं जिनपूजा के समय पाँच अभिगम, दसत्रिक आदि का पालन करने से तथा जिनपूजा हेतु उत्तम द्रव्यों का प्रयोग करने से चित्त में उत्तम भावों का जागरण होता है। इसी के साथ शुद्ध आत्मस्वरूप प्राप्ति की रुचि जागृत होती है तथा संसार के नशे में बेभान हुए जीव को स्वदशा का भान होता है। इस विषम पंचम काल में आत्मोद्धार हेतु जिनबिम्ब एवं जिनागम ही एक मात्र आधार है अत: उनका दर्शन, वंदन एवं पूजन करना आवश्यक है। इसके द्वारा हमारे भीतर प्रभु के गुणों का अवतरण होता है।
कई लोग कहते हैं कि परमात्मा तो वीतराग है तो फिर उनमें प्रेम, मैत्री आदि के भाव कैसे हो सकते हैं?
भगवान राग रहित हैं, प्रेम रहित नहीं। दर्शन मोहनीय का क्षय होने से भगवान में अनंत प्रेम का प्रगटीकरण होता है। रागभाव और प्रेमभाव में अंतर है। राग किसी एक वस्तु के प्रति अत्यधिक मूर्छा है जो अन्य के प्रति द्वेष उत्पन्न करती है किन्तु प्रेम तो सभी के प्रति समान अर्थात Universal होता है।