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पूजा उपकरणों का संक्षिप्त परिचय एवं ऐतिहासिक विकास क्रम ...209
चामर- ऊपर में चाँदी आदि की डंडी एवं नीचे में सफेद प्लास्टिक जैसे धागों के गुच्छक वाला उपकरण चामर कहलाता है। परमात्मा के समक्ष नृत्यपूजा करने एवं चामरयुगल रूप परमात्मा के अतिशय की अभिव्यक्ति हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।
थाली- पूजा उपयोगी सामग्री जैसे- पुष्प, कटोरी आदि रखने के लिए उपयोग किया जाने वाला उपकरण थाली कहलाता है। भिन्न भिन्न साइज की थालियों का प्रयोग भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए होता है। जैसे कि पूजा करने हेतु कटोरी आदि रखने के लिए छोटी थाली एवं पंच धातु की प्रतिमाओं एवं नवपद गट्टाजी आदि को एक जगह से दूसरी जगह पर लाने-ले जाने तथा आरती आदि करने हेतु बड़ी थालियों का उपयोग होता है।
___ तासली (कटोरा)- चाँदी आदि की बड़ी कटोरी, कटोरा या बड़ा Bowl तासली कहलाता है। घिसा हुआ केशर, बरास आदि रखने के लिए इसका प्रयोग होता है।
कटोरी- परमात्मा की विलेपन पूजा हेतु केसर, बरास आदि रखने के लिए उपयोगी चाँदी आदि की छोटी वाटकी कटोरी कहलाती है।
पुष्प चंगेरी (पुष्पछाब)- चाँदी, बाँस आदि से निर्मित पुष्पों को रखने की टोकरी या पात्र पुष्प चंगेरी कहलाता है। पूजा हेतु उपयोगी पुष्प इसमें रखे जाते हैं। इसे फूल छाब भी कहते हैं।
सिंहासन- चाँदी, अन्य धातु या काष्ठ आदि से निर्मित राज्य सिंहासन के समान छोटी चौकी सिंहासन कहलाती है। कहीं-कहीं पर समवसरण की प्रतिकृति रूप त्रिगड़े को भी सिंहासन कहते हैं। यदि किसी मन्दिर में त्रिगडा नहीं हो तो सिंहासन पर भी स्नात्र पूजा पढ़ाई जाती है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग पंच धातु प्रतिमाओं की पूजा, अंगरचना या पूजन आदि में उन्हें विराजमान करने हेतु किया जाता है।
छात्र- जिनप्रतिमा के ऊपर छत्रि के समान सोने या चाँदी का अर्ध गोलाकार उपकरण छत्र कहलाता है। समवसरण में साक्षात अरिहंत परमात्मा के ऊपर तीन छत्र होते हैं। उसी की प्रतिकृति रूप जिन प्रतिमा के ऊपर भी एक या तीन छत्र लटकाए जाते हैं। यह परमात्मा के त्रिलोक पूज्यता प्रतीक माने जाते हैं।
धूपकडुच्छुय (धूपदानी)- रजत, पीतल आदि से निर्मित धूप रखने का