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166... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... __ हे शुद्धात्मन्! बीज की अंतिम अवस्था फल के रूप में होती है। मैं आपको यह फल अर्पित करते हुए अंतिम फल स्वरूप मोक्ष प्राप्ति की इच्छा करता हूँ। हे नाथ! मैंने सुना है कि ‘फल थी फल निरधार'। मुझे विश्वास है कि आप भी मेरी फल पूजा को निष्फल नहीं करेंगे। ___हे भवदुख भंजन! फलपूजा अनिष्ट कर्मों के फल को नष्ट करनेवाली है। सांसारिक फलों को प्राप्त कर मैं अपने आत्मस्वरूप को भूल गया हूँ। अब आप मुझे ऐसे फल का वरदान दो, जिससे सदा मुझे अपने आत्मस्वरूप का भान बना रहे। मुझे किसी अन्य फल प्राप्ति की इच्छा ही न रहे।
हे शान्त सुधाकर! जिस प्रकार वृक्ष पर पत्ते, पुष्प आदि आने के बाद फल भी लग ही जाते हैं वैसे ही सद्गति, सुख-शान्ति, वैभव-विलास आदि रूप पत्ते एवं पुष्प प्रदान करने के बाद मुझे मोक्ष फल भी प्रदान करो।
हे परमात्मा! आपका अद्वितीय आत्मस्वरूप अमृत से भी मधुर, जग हितकारी, दुखों का हरण करने वाला, आत्मवैभव को प्रदान करने वाला, सहजानंद स्वरूप को उपलब्ध करवाने वाला है। आपने मोहरूपी पर्वत श्रेणी को नष्ट कर दिया है तथा आप मोक्षफल देने में समर्थ हैं। अत: हे दयासिन्धु! मुझ पर अपनी करुणा धार बरसाकर मुझे कृतार्थ करें।
हे जिनेश्वर! फलों में श्रेष्ठ श्रीफल का आन्तरिक गोटा एवं ऊपर का आवरण जैसे अलग-अलग होता है, मेरी भी वही स्थिति है। यह शरीर तो मात्र बाह्य आवरण रूप है। मेरी आत्मा इससे बिल्कुल भिन्न है। आपको इन श्रेष्ठ फलों का अर्पण, मुझे अपने स्वरूप का भान करवाते हुए स्वस्वरूप में रमण करवाएगा। यही अन्तरकामना करता हूँ। ___ अष्टप्रकारी पूजा के बाद परमात्मा के सम्मुख चामर, दर्पण, वस्त्र, मुकुट आदि आभूषण पूजाएँ भी की जाती है जिनका वर्णन इक्कीस प्रकारी पूजा में आता है। ये पूजाएँ करते समय निम्नोक्त भावनाएँ करनी चाहिए। चामर पूजा से करें भव नृत्य का नाश
अरिहंत परमात्मा की चामर पूजा करते हुए परमात्मा के समवसरण का साक्षात्कार करना चाहिए।
हे अतिशयधारी! समवसरण में आपकी ऋद्धि इन्द्र-देवेन्द्र की ऋद्धि को भी मात करती है। आपका ऐश्वर्य एवं अतिशय ऐसा है कि स्वयं इन्द्र आपके आगे चँवर लेकर नृत्य करते हैं।