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भावे भावना भाविए ...175 तीन प्रकार किए हैं। तदनुसार एक नमुत्थुणं पूर्वक जघन्य चैत्यवंदन, दो या तीन नमुत्थुणं पूर्वक मध्यम चैत्यवंदन और चार या पाँच चैत्यवंदन पूर्वक उत्कृष्ट चैत्यवंदन किया जाता है।
पंचाशक प्रकरण में कर्ता के भावों के आधार पर चैत्यवंदन के तीन प्रकार किए गए हैं। अपुनर्बन्धक, अविरत सम्यग्दृष्टि और विरत सम्यग्दृष्टि के भावों के अनुसार यह तीन प्रकार किए गए हैं। अपुनर्बन्धक के द्वारा किया गया जघन्य, मध्यम या उत्कृष्ट चैत्यवंदन भी जघन्य चैत्यवंदन की श्रेणी में आता हैं क्योंकि सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा उसके भावों की विशुद्धि कम ही होती है। अविरत सम्यग्दृष्टि के द्वारा किया गया वंदन मध्यम श्रेणी का होता है क्योंकि अपुनर्बन्धक की अपेक्षा इनकी भाव विशुद्धि अधिक होती है किन्तु विरत सम्यग्दृष्टि से कम। विरत सम्यग्दृष्टि द्वारा किए गए जघन्य आदि तीनों प्रकार के चैत्यवंदन उत्कृष्ट ही होते हैं क्योंकि इनकी भावविशुद्धि अपुनर्बन्धक एवं अविरत सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा अधिक ही होती है।
इन तीनों के उल्लास भाव आदि के आधार पर चैत्यवंदन के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तीन भेद किए गए हैं। भावपूजा में उपयोगी विभिन्न सूत्र एवं मुद्राएँ
भावपूजा का अभिन्न अंग है चैत्यवंदन विधि में उपयोगी सूत्र एवं उनकी प्रयोग विधि। इन्हीं के माध्यम से भावपूजा की सम्यक आराधना एवं सहज सिद्धि हो सकती है।
भावपूजा करते हुए निम्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है-10
नवकार, खमासमणसूत्र, इरियावहियं, तस्सउत्तरी, अन्नत्थ, लोगस्स, नमुत्थुणं, अरिहंत चेइयाणं, पुक्खरवरदी, सिद्धाणं बुद्धाणं, जावंति चेइआई, जावंत केवि साहु एवं जयवीयराय सूत्र। इसी के साथ प्रभु भक्ति में अन्तर्लीन होने हेतु आचार्यों द्वारा रचित भाववाही स्तुतियाँ, स्तवन, चैत्यवंदन स्तुति जोड़ा आदि का भी उपयोग किया जाता है। ___ भजन-कीर्तन, ध्यान-कायोत्सर्ग, नृत्य-गान आदि भी भावपूजा के प्रशस्त मार्ग माने जाते हैं। भावपूजा के दौरान जब सूत्रार्थ का चिंतन-मनन किया जाता है तब हृदय में परमात्मा के प्रति अनायास ही अहोभाव जागृत होते हैं, जो आत्मिक विशुद्धि एवं आचार निर्माण में कारणभूत बनते हैं। इन सूत्रों को