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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...157
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केशरपूजा आदि करके कई लोग अंगलुंछन वस्त्र से ही हाथ पोंछ लेते हैं। इससे परमात्मा की आशातना होती है ।
• पाट पुंछन आदि के लिए भी अलग वस्त्र रखना चाहिए। एक ही वस्त्र का प्रयोग दोनों कार्यों हेतु नहीं करना चाहिए।
• परमात्मा का अंगलुंछन तीन भिन्न-भिन्न वस्त्रों से करना चाहिए।
• अंगलुंछन वस्त्रों को थाली में रखना चाहिए। उन्हें नीचे जमीन आदि पर नहीं रखना चाहिए।
• प्रत्येक श्रावक को पर्व दिवसों में अथवा महीने में एक बार परमात्मा को अंगलुंछन वस्त्र अवश्य चढ़ाने चाहिए।
• परमात्मा को artificial अलंकार आदि नहीं चढ़ाने चाहिए। संभव हो तो रत्न, मणि, मोती आदि से जड़ित स्वर्णाभूषण अथवा चाँदी के आभूषण चढ़ाने चाहिए।
• भगवान को चढ़ाने हेतु आंगी - मुकुट आदि भी सोने-चाँदी से बनाने चाहिए। ताँबे की आंगी परमात्मा को नहीं चढ़ानी चाहिए। आरती- मंगल दीपक में रखने योग्य सावधानियाँ
• आरती उतारना एक पवित्र एवं आदरसूचक क्रिया है। अतः आरती करने वाले श्रावकों को 1. ललाट पर तिलक लगाना चाहिए, 2. टोपी, पगड़ी आदि के द्वारा सिर ढंका हुआ होना चाहिए, 3. कंधे पर उत्तरासन ( दुपट्टा ) अवश्य होना चाहिए। आजकल मन्दिरों में लगभग यह व्यवस्था रखी जाती है।
• आरती को नाभि से नीचे और नासिका के ऊपर नहीं ले जाना चाहिए। • आरती और मंगलदीपक को सृष्टिक्रम अर्थात परमात्मा के दाहिने पक्ष से ऊपर की ओर ले जाना चाहिए।
• वर्तमान में समयाभाव एवं प्रमाद के कारण इक्का-दुक्का लोगों के द्वारा या मात्र पुजारी के द्वारा आरती सम्पन्न की जाती है, जो कि सर्वथा अनुचित है। शंखनाद, घंटनाद, धूप, चामर और मधुर काव्यों का गान करते हुए श्रीसंघ के साथ आरती करनी चाहिए ।
• आरती होने के बाद आरती और मंगलदीपक को छिद्र वाले ढक्कन से ढंक देना चाहिए।
• रात्रि में परमात्मा भक्ति के बाद दस बजे आरती करना एक अनुचित क्रिया है।