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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ... 153
• पूजा की थाली में धूप-दीपक आदि रखकर परमात्मा की नवांगी पूजा नहीं होती। उन्हें बाहर रखकर गर्भगृह में प्रवेश करना चाहिए ।
• दीपक जलाने हेतु डालडा घी या तेल आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। परमात्मा के समक्ष शुद्ध गाय के घी का दीपक करना चाहिए।
• स्वद्रव्य का उपयोग करने वालों को पूजा प्रारंभ करने से पूर्व दीपक जलाना चाहिए। दीपक पूजा से पूर्व दीपक प्रज्वलित करने से विधि का पालन तो हो जाता है किन्तु परमात्मा के प्रति बहुमान भाव एवं भक्ति में उल्लास भाव प्रकट नहीं होते ।
अक्षत पूजा सम्बन्धी सावधानियाँ
• अक्षत पूजा हेतु उत्तम Quality के चावलों का प्रयोग करना चाहिए। घर में प्रयोग किए जाने वाले चावलों को छानकर उनकी कनकी का प्रयोग मंदिर में करना निम्न भावों का परिचायक है।
• चावल की डिब्बी, थैली, पेटी आदि को नियमित साफ करते रहना चाहिए जिससे उसमें जीवोत्पत्ति न हो।
• चावलों के साथ मिश्री आदि नहीं रखनी चाहिए, उसका चूरा आदि चावलों में मिलने से चींटियाँ आदि जल्दी आ जाती है।
• पूजा का रूमाल चावलों के साथ नहीं रखना चाहिए। रूमाल मुखवायु, श्वासोच्छ्वास आदि से अशुद्ध हो जाता है तथा चावलों के साथ रखने से चावल भी अशुद्ध हो जाता है।
• चावल रखने की पेटी प्लास्टिक, स्टील या लोहे की नहीं होनी चाहिए। • अक्षत पूजा करते हुए चावल जमीन पर नहीं गिराना चाहिए।
• परमात्मा को बधाने हेतु चावलों को जमीन पर नहीं उछालने चाहिए, उन्हें पाट आदि पर डालना चाहिए।
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स्वस्तिक आदि बनाने हेतु तर्जनी अंगुली का ही प्रयोग करना चाहिए। अनामिका या अंगूठे का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• अक्षत पूजा करते समय पहले स्वस्तिक और फिर सिद्धशिला बनानी
चाहिए।
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चैत्यवंदन विधि और अक्षत पूजा साथ में नहीं करनी चाहिए।
• चैत्यवंदन करते समय साथिया ठीक करना, फल सजाना आदि क्रियाएँ करने से आशातना होती है।