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जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार......15 आचीर्ण है।62 ___दिगम्बर परम्परा में भी अष्टप्रकारी पूजा का उल्लेख अनेक स्थानों पर प्राप्त होता है।
__ लघु अभिषेक पाठ के अनुसार पवित्र जल, सुगन्धित चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीपक, धूप और फल से जिनेन्द्र देव की पूजा करनी चाहिए।63 __ श्रीपाल चरित्र में मयणा सुंदरी के द्वारा आठ दिनों तक जल, चन्दन, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य और फल आदि आठ प्रकार की पूजा करने का वर्णन है।64
वर्तमान प्रचलित श्वेताम्बर परम्परा में नित्यपूजा के रूप में अष्टप्रकारी पूजा का ही प्रचलन देखा जाता है। अष्टप्रकारी पूजा का उद्भव अष्टोपचारी पूजा से ही हुआ है क्योंकि अष्टप्रकारी एवं अष्टोपचारी पूजा में मुख्य भेद स्नपन पूजा को लेकर ही है। वर्तमान में प्रक्षाल को भी पूजा के अन्तर्गत ही समाहित कर लिया गया है जबकि पूर्व काल में आठवीं पूजा के रूप में कलश को जल से भरकर रखने का विधान था। आजकल कलश को भरकर रखने का विधान तो प्राय: लुप्त हो चुका है और उसके स्थान पर प्रथम पूजा के रूप में स्नपन पूजा की जाती है। शेष पूजाएँ समान ही हैं।
सर्वोपचारी पूजा- दशार्णभद्र के समान ठाठ-बाट से भक्ति करते हुए स्वयं की सर्वोत्कृष्ट संपत्ति के द्वारा प्रभुभक्ति करना सर्वोपचारी पूजा है।
औपपातिक सूत्र के अनुसार सर्व ऋद्धि, सर्व भक्ति, सर्व बल, सर्व समुदाय सर्व सम्मान, सर्व विभूति, सर्व विभूषा, सभी प्रकार के पुष्प, गंध, वास, माल्य, अलंकार, सभी प्रकार के वाद्य निनाद से पूजा करनी चाहिए। यह सर्वोपचारी पूजा का एक प्रकार है।65 . आवश्यक भाष्य के जिनपूजा अधिकार में कहा गया है कि कपूर, चन्दन, कस्तूरी, केसर आदि द्रव्यों से जिनबिम्ब का शक्तिपूर्वक विलेपन करके वैभव के अनुसार उनकी पूजा करना, सुगन्धित पुष्प, सुवर्ण, मौक्तिक, रत्न आदि विविध प्रकार की मालाओं से, सरसों, दही, अक्षत, खाजे, उत्तम लड्ड आदि द्रव्यों से तथा आम आदि सुपक्व फलों सहित संविग्न भावयुक्त होकर नैवेद्य चढ़ाना सर्वोपचारी पूजा है।66
राजप्रश्नीयसूत्र एवं ज्ञाताधर्मकथासूत्र में सूर्याभदेव एवं द्रौपदी के द्वारा