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50... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• मन्दिर जाते समय स्वयं के सम्मान सूचक चिह्न जैसे कि साफा, पगड़ी आदि पहनकर नहीं जाना चाहिए। यह भी एक प्रकार का विनय है। इन्हें आरती के समय पहन सकते हैं।
• शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए फूल आदि लगाकर मन्दिर में नहीं जाना चाहिए।
• स्कूल बैग, ऑफिस का टिफिन या बाजार से खरीदा हआ सामान आदि मन्दिर परिसर के बाहर रखना चाहिए। परमात्मा के सामने पर्दे या आड़ का पूर्ण विवेक रखना चाहिए। ___ प्रश्न हो सकता है कि परमात्मा के सामने साफा, मुकुट आदि त्याग करना चाहिए तो फिर आरती, वरघोडा आदि के समय साफा, मुकुट आदि पहनने का विधान क्यों? ___ इसका समाधान यह है कि जुलूस, सामैया आदि में जाते समय साफा आदि जैनत्व की गरिमा को दर्शाने के लिए पहने जाते हैं, जो कि जिनधर्म का सम्मान है। परंतु वहीं मन्दिर में प्रवेश करते समय साफा आदि उतारना विनय गुण एवं परमात्मा को स्वामी रूप में स्वीकार करने का सूचक है। इसी प्रकार पूजन-महापूजन एवं आरती के समय इन्हें धारण करने का हेतु यह है कि श्रावक इस समय स्वयं को देवतुल्य मानता है तथा मुकुट आदि उसे देव होने की अनुभूति करवाते हैं।
2. अचित्त का अत्याग- मन्दिर जाते समय श्रावक को शरीर की शोभा के लिए उपयोगी निर्जीव वस्तुएँ जैसे वस्त्र, अलंकार आदि पहनकर जाना एवं पूजा उपयोगी सामग्री साथ लेकर जाना अचित्त त्याग नाम का अभिगम कहलाता है। नीति शास्त्रों में कहा गया है-“रिक्तपाणि न गच्छेत् राजानं देवतं गुरुम्"राजा, देवता और गुरु के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। अत: परमात्मा के दर्शन हेतु जाते समय पूजा योग्य सामग्री लेकर जाना श्रावक का प्रमुख कर्तव्य है।
• श्रावक मुकुट को छोड़कर शेष सभी अलंकार मन्दिर में पहनकर जा सकते हैं।
• पूजा उपयोगी सर्व सामग्री श्रावकों को साथ में अवश्य लेकर जाना चाहिए।