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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...103 वास हो। आपकी अक्षत पूजा करने से मेरा यह मनुष्य भव सफल हुआ। अब इस पूजा के भावी फल के रूप में मुझे इस संसार सागर से तारो।
अब तक सांसारिक फलों की चाह रखने के कारण मैं इस संसार में ही परिभ्रमण कर रहा हूँ। आप ही मुझे अष्ट कर्मों के निवारण रूप मोक्ष फल प्रदान कर सकते हैं।
इस संसार की चारों गतियों में भ्रमण करते हुए जन्म-मरण के बहुत चक्कर किए परन्तु मोक्ष रूप पंचम गति प्राप्त नहीं हो तब तक सच्चा शाश्वत सुख कहीं भी नहीं है।
नैवेद्य पूजा- पूजा विधि में सातवें स्थान पर नैवेद्य पूजा का वर्णन आता है। अणाहारी पद प्राप्ति की भावना से संपुट मुद्रा में नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। श्लोक- सकल पुद्गल संग विवर्जितं, सहज चेतन भाव विलासकं ।
सरस भोजन नव्य निवेदनात, परम निवृत्त भावमहं स्पृहे ।। अर्थ- प्रभु को नैवेद्य (पक्वान्न) चढ़ाने से आत्मा के समस्त कर्म पुद्गल दूर होते हैं और आत्म स्वभाव विकसित होता है। इसलिए उत्तम प्रकार के सरस नैवेद्य चढ़ाकर परमात्मा से निवृत्ति भाव की याचना करता हूँ। दोहा- अणाहारी पद मैं कर्या, विग्गह गईय अनंत ।
दूर करी ते दीजिए, अणाहारी शिव संत ।। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा।
अर्थ- विग्रह गति में अर्थात एकभव से दूसरे भव में जाते हुए अनंत बार अणाहारी अवस्था प्राप्त हुई परन्तु क्षणमात्र में ही पुनः आहार संज्ञा प्राप्त होने के कारण उसका कोई सार नहीं है। अब इस संज्ञा को दूर करके शाश्वत अणाहारी पद (मोक्ष पद) प्रदान करें।
फल पूजा- अष्टप्रकारी पूजा में आठवें और अन्तिम स्थान पर फल पूजा का उल्लेख है। यह पूजा मोक्षरूपी श्रेष्ठतम फल प्राप्ति की भावना से विवृत्त समर्पण मुद्रा में की जाती है। श्लोक- कटुक कर्म विपाक विनाशनं, सरस पक्व फल व्रज ढौकनम्।
वहति मोक्ष फलस्य प्रभोः पुरः, कुरूत सिद्धि फलाय महाजनः ।। अर्थ- फल पूजा अनिष्ट कर्मों के फल को नष्ट करने वाली है। सरस पके