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126... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
समाधान- पुष्प एकेन्द्रिय जीव है इसमें किसी प्रकार की शंका नहीं है। जहाँ उसका उपयोग है वहाँ निश्चित रूप से हिंसा भी होगी। परन्तु जो लोग हिंसा और अहिंसा का सही स्वरूप नहीं जानते, उनके विविध पर्यायों को नहीं समझते, उनके लिए पुष्प पूजा एक हिंसात्मक प्रक्रिया है। यदि जैन धर्म के गूढ़ रहस्यों को समझा जाए तो जिनपूजा हेतु पुष्प प्राप्ति की जो विधि बतलाई गई है उसका विधिवत पालन किया जाए तो पुष्पपूजा के निमित्त लेशमात्र भी हिंसा नहीं होती। ___सांसारिक कार्यों में प्रयुक्त होने वाले पुष्पों को पीड़ा एवं उनकी दुर्गति निश्चित है जबकि परमात्मा के चरणों में समर्पित करने पर उनकी स्वाभाविक मृत्यु होती है। परमात्म शरण प्राप्त करने से उनका कल्याण भी निश्चित हो जाता है।
जैन धर्म भावना प्रधान है। पुष्पपूजा करते समय उनकी हिंसा के भाव नहीं होते अत: मात्र द्रव्य कर्म का बंध ही होता है भाव कर्म का नहीं और द्रव्य कर्म उसी समय क्षीण हो जाता है। अत: जिनपूजा में पुष्पों का प्रयोग करने पर हिंसा का दोष नहीं लगता। पुष्पपूजा का प्रतीकात्मक रूप
पुष्प-सुंदरता, शुद्धता, कोमलता एवं पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। कमल को ज्ञान का प्रतीक मानते हैं। पुष्प के द्वारा परोपकार वृत्ति की भी शिक्षा मिलती है। पुष्पों पर बैठकर भंवरा उसके परिमल द्वारा अपनी उदर पूर्ति करता है तथा परिणामस्वरूप उसकी सौरभ को भी प्रसरित करता है। ___इन सब गुणों के कारण पुष्पपूजा करने वाले में तद्प गुणों का विकास होता है। वे आचार-विचार एवं वाणी के सद्गुणों से युक्त होकर सर्वत्र अपनी सौरभ को प्रसरित करते हैं। ____ अष्टप्रकारी पूजा के क्रम में वर्णित अब तक की तीनों पूजाओं का समावेश अंग पूजा में होता है। आगे की पाँच पूजाएँ अग्र पूजा के अन्तर्गत समाविष्ट होती हैं। अंग, अग्र एवं भाव पूजा में मुख्य अंतर
जल, चन्दन एवं पुष्प पूजा इन तीनों को अंगपूजा कहा है। इन्हें विघ्न विनाश का हेतु माना गया है। द्रव्य राग आत्मसिद्धि में विघ्न बाधाएँ उत्पन्न