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108... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... बिठाकर उनका अभिषेक करवाते हैं। इस प्रकार देवतागण स्वऋद्धि अनुसार भव्यातिभव्य रूप से जन्माभिषेक का आयोजन करते हैं।
गीतार्थ आचार्यों के अनुसार जैसे किसी राजा के राज्य अभिषेक या राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में राज दरबार जन-मेदनी से भर जाता है वैसे ही परमात्मा का दरबार भक्तजनों से भर जाना चाहिए। उपस्थित श्रावक वर्ग को वाजिंत्र, चामर, पंखी, शंख आदि लेकर खड़े रहना चाहिए। अभिषेक के दौरान परमात्मा के दोनों तरफ चामर एवं पंखा झुलाना चाहिए तथा घंटा, शंख, शहनाई, करताल आदि की मधुर ध्वनि से सम्पूर्ण दरबार में गुंजन करना चाहिए। सुमधुर कंठ से श्रावकों को अभिषेक सम्बन्धी काव्य स्तोत्रों का गान करना चाहिए। त्रिलोकीनाथ का अभिषेक ऐसे ही शाही ठाठपूर्वक करना चाहिए।
जल अभिषेक करने हेतु विधिपूर्वक ललाट आदि पर तिलक लगाकर हाथों को धूप से अधिवासित करना चाहिए। तदनन्तर एकाग्रतापूर्वक परमात्मा की ओर दृष्टि स्थापित कर मोरपिच्छी के द्वारा जिनबिम्ब, अलंकार आदि की प्रमार्जना करनी चाहिए। फिर अत्यंत जयणापूर्वक पुष्पादि निर्माल्य एवं अलंकारों को उतारना चाहिए। अभिषेक हेतु उपयोगी कलश, कुंडी, अंगलुंछण वस्त्र आदि की भी प्रमार्जना करनी चाहिए। सम्पूर्ण क्षेत्र की जयणापूर्वक प्रमार्जना करने के बाद प्रक्षाल की क्रिया प्रारंभ करनी चाहिए।
अभिषेक आरंभ हो तब वाजिंत्रों का नाद एवं मंगल स्तोत्रों का गान करते हुए अहोभावपूर्वक परमात्मा का ही ध्यान करना चाहिए। आपस में किसी भी प्रकार का सांसारिक वार्तालाप नहीं करना चाहिए।
सर्वप्रथम पंचामृत या दूध से एवं तदनन्तर जल से प्रक्षाल करना चाहिए। इससे पंचामृत आदि की चिकनाई अच्छे से निकल जाती है तथा जीवोत्पत्ति की संभावना नहीं रहती। उसके पश्चात यत्नपूर्वक वालाकुंची का प्रयोग करते हुए प्रतिमाजी पर विद्यमान केशर आदि निकालना चाहिए और अंत में प्रतिमा को निर्जल करने के लिए तीन वस्त्रों के द्वारा परमात्मा का अंगलुंछन करना चाहिए। इससे प्रतिमा में श्यामता नहीं आती। ____ वर्तमान में पुजारी या एकाध श्रावक के भरोसे हो रही प्रक्षाल क्रिया कितनी उचित है, यह गृहस्थों के लिए विचारणीय तथ्य है?