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104... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
हुए फलों से की गई फल पूजा मोक्ष फल का प्रतीक है। अतः भव्य प्राणियों को मोक्ष फल की प्राप्ति के लिए फल पूजा करनी चाहिए ।
दोहा
इन्द्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग । पुरुषोत्तम पूजा करी, माँगे शिवफल त्याग ।। अर्थ- इन्द्र आदि देवी-देवतागण पूजा करते हुए अनुराग पूर्वक परमात्मा को फल चढ़ाते हैं और उनसे मोक्ष फल प्राप्ति की कामना करते हैं। मैं भी फल पूजा द्वारा मोक्ष प्राप्ति की कामना करता हूँ ।
ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ।
इस प्रकार अष्टप्रकारी पूजा विधि सम्पन्न होती है। इसके बाद भाव पूजा रूप चैत्यवंदन विधि की जाती है। इसका वर्णन हम भावपूजा के विभाग में करेंगे। अष्टप्रकारी पूजा के मध्य ही दीपक पूजा के बाद चामर एवं दर्पण पूजा भी की जाती है। इसका वर्णन स्नात्र पूजा में आता है । अष्टप्रकारी पूजा में इनका समावेश न होने से यह वर्णन अन्त में किया जा रहा है
चामर पूजा - दीपक पूजा के बाद चामर पूजा की जाती है। इस पूजा के माध्यम से दोनों हाथों में चामर लेकर नृत्य करते हुए भव भ्रमण समाप्ति की भावना की जाती है।
दोहा
चामर बींझे सुर मन रीझे, वींझे थइ उजमाल । चामर प्रभु शिर ढालतां, करतां पुण्य उदय थाय ।
अर्थ- आपके समक्ष चामर बींझते हुए देवतागण अत्यंत आनंद की अनुभूति एवं अनंत कर्मों की निर्जरा करते हैं। आपके आगे चामर ढुलाने से प्रकर्ष पुण्य प्रकट होता है एवं ऊर्ध्वगति की प्राप्ति होती है।
दर्पण पूजा - दर्पण पूजा के द्वारा परमात्मा को हृदय में स्थापित करने की भावना करते हुए निम्न दोहा बोला जाता है
दोहा
प्रभु दर्शन करवा भणी, दर्पण पूजा विशाल । आतम दर्पण थी जुवे, दर्शन हुए तत्काल ।। अर्थ- साक्षात परमात्मा का दर्शन करना असंभव है अतः दर्पण के द्वारा उनका दर्शन करते हुए बाह्य दर्पण में जिनबिम्ब का और आत्मा रूपी भाव दर्पण में परमात्मा के साक्षात दर्शन होते हैं।