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जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...59 जाता है। पाँचों अंग जमीन को स्पर्श कर सकें इस प्रकार यह प्रणाम करना चाहिए।
सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र में कहा गया है “ इक्को वि नमुक्कारो जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स, संसार सागराओ तारेइ नरं व नारिं वा।” अर्थात प्रकृष्ट भावों से किया गया एक बार का वंदन भी नर अथवा नारी को भव सागर से पार कर देता है। इस दुनिया में हम अनेक लोगों के आगे-पीछे घूमते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं, जरूरत होने पर गधे को बाप भी बनाते हैं परन्तु इन सबको किया गया वंदन स्वार्थ युक्त होने से लौकिक लाभ में भले ही हेतुभूत बन जाए किन्तु भावजगत में इसके कोई शुभ परिणाम नहीं होते। वहीं राजराजेश्वर तीर्थंकर परमात्मा को वंदन करने से वैयक्तिक जीवन में नम्रता, लघुता, विनय आदि गुणों का विकास होता है जिससे इस लोक में स्नेह, आशीष एवं प्रेम की प्राप्ति होती है तथा भविष्य में पूज्यता प्राप्त होती है । अतः तीर्थंकर परमात्मा को किया गया। प्रणाम इह लोक और परलोक दोनों में ही मंगलकारी है।
परमात्मा को प्रणाम करने के विषय में जो असावधानियाँ देखी जाती हैं वे इस प्रकार हैं
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कई लोग परमात्मा के दरबार में आकर भी खमासमण आदि देने से कतराते हैं क्योंकि ऐसा करने से उनके Dress की प्रेस बिगड़ जाती है। वर्तमान प्रचलित Skin tight Jeans आदि में खमासमण देना संभव भी नहीं है। बैठे-बैठे या आधे खड़े होकर खमासमण नहीं देना चाहिए ।
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• पंचांग प्रणिपात करते हुए जयणा पूर्वक भूमि का निरीक्षण कर खमासमण देना चाहिए तथा पाँचों अंग भूमि से स्पर्शित होने चाहिए। 4. पूजा त्रिक
पूजा का अर्थ है समर्पण। परमात्मा को अपना सर्वस्व समर्पित कर देना, उनका आदर-सम्मान करना पूजा कहलाता है। जहाँ प्रेम होता है वहीं समर्पण होता है। समर्पित व्यक्ति के भीतर परमात्मा के प्रति अनायास सर्वोत्तम द्रव्य अर्पण करने के भाव प्रस्फुटित होने लगते हैं । जैन शास्त्रकारों ने जिनपूजा के तीन प्रकार बताए हैं। इसे ही पूजा त्रिक के नाम से जाना जाता है। उनके नाम इस प्रकार हैं- 1. अंगपूजा 2. अग्र पूजा और 3. भाव पूजा । 11 1. अंगपूजा - जिन प्रतिमा का स्पर्श करते हुए पूजा सम्पन्न की जाती
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