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जिनपूजा एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ... 69
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हुए मनोहर, अखंड, बिना सिले हुए, शुद्ध एवं धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए। पुरुषों के लिए धोती और दुपट्टा इन दो अखंड वस्त्रों का विधान है तथा महिलाओं के लिए तीन वस्त्र । वर्तमान में महिलाओं के द्वारा चौथे वस्त्र के रूप में मुखकोश को प्रयुक्त किया जाता है ।
पुरुषों को पूजा हेतु दूध के समान श्वेत वस्त्र पहनने का उल्लेख शास्त्रों में अनेक स्थान पर प्राप्त होता है।
• पूजा के वस्त्र पहनने की विधि बताते हुए कहा है कि धोती पहनते समय उसमें गाँठ नहीं लगानी चाहिए ।
• आगे-पीछे की पटली (Plates) इस प्रकार लगानी चाहिए कि नीचे का अंग नहीं दिखे।
• धोती के ऊपर सोना, चाँदी, पीतल आदि धातुओं का कंदोरा यथाशक्ति अवश्य पहनना चाहिए।
• दायाँ कंधा खुला रहे इस प्रकार उत्तरासंग पहनना चाहिए। दुपट्टे के दोनों छोर (किनारों) पर रेशम के फुंदे होने चाहिए, जिससे भूमि आदि की प्रमार्जना हो सके।
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खेस को इस प्रकार पहनना चाहिए कि उसके पल्ले से आठ पट्ट का रूमाल बांधा जा सके। पुरुषों को अलग से मुखकोश का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• अंगों का प्रदर्शन हो इस प्रकार पूजा के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
सामर्थ्य हो तो दसों अंगुलियों में अंगुठी धारण करनी चाहिए। यदि संभव न हो तो पूजा की अंगुली (अनामिका अंगुली) में तो मुद्रिका अवश्य पहननी चाहिए।
• विधि ग्रन्थों में वीरवलय, बाजुबंध, मुकुट, नवसर हार आदि पहनने के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं। महिलाओं को भी सोलह शृंगार करके जिन मन्दिर जाना चाहिए।
• ठंड के दिनों में स्वेटर आदि पहनने की अपेक्षा पूजा हेतु अलग शॉल रखनी चाहिए और उसे भी मूल गंभारे में पहनकर नहीं जाना चाहिए।
• कुछ आचार्यों ने पूजा के वस्त्रों को 'ॐ ह्री आं क्रौं नम:' इस मंत्र से अभिमंत्रित एवं धूप से अधिवासित करके पहनने का विधान भी बताया है।