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जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...77
• अभिषेक करते समय प्रक्षाल का जल नहीं लगाना चाहिए। इसे न्हवण पात्र में निकालने के बाद घर जाते समय लगाना चाहिए। अंगलुंछन करने की विधि
• ' साक्षात तीर्थंकर परमात्मा का अंगलुंछन कर रहे हैं इन भावों से युक्त होकर मलमल के सूती वस्त्र से अत्यंत कोमलतापूर्वक अंगलुंछन करना चाहिए।
• तीन प्रकार के अंगलुंछन वस्त्रों के प्रयोग का विधान है। पहला अंगलुंछन थोड़ा मोटा, दूसरा थोड़ा पतला ( पक्की मलमल) और तीसरा सबसे पतला (कच्ची मलमल ) होना चाहिए।
• अंगलुंछन के वस्त्र सफेद, मुलायम एवं काण (तिरछापन) रहित होने
चाहिए।
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अंगलुंछन वस्त्रों का प्रयोग करने से पूर्व उन्हें दशांग धूप आदि से पि कर सुगंधित करना चाहिए ।
अंगलुंछन करते समय शरीर या वस्त्रों का स्पर्श परमात्मा से नहीं हो, इसकी सावधानी रखनी चाहिए ।
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अंगलुंछन वस्त्रों को एक थाली में ही रखना चाहिए। भूमि पर रखे गए वस्त्रों का प्रयोग बिना धोए नहीं हो सकता।
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• अंगलुंछन करते समय सर्वप्रथम प्रतिमाजी पर रहे हुए पानी को ऊपरऊपर से सुखाना चाहिए। इसके बाद दूसरे अंगलुंछण के द्वारा संपूर्ण बिम्ब का पानी सोखा जाता है। फिर उसी अंगलुंछण वस्त्र से अंग-उपांग, हथेली के नीचे, कंधे के नीचे आदि छोटी जगह में वस्त्र की पतली लट बनाकर वहाँ से आरपार निकाली जाती है। इससे भी यदि पानी न सुखे तो शलाका का प्रयोग किया जाता है।
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सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, चंदन आदि से निर्मित शलाका का प्रयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए। तदनन्तर तीसरे अंगलुंछण वस्त्र के द्वारा संपूर्ण प्रतिमा को धीरे से पोछना चाहिए, जिससे कहीं भी पानी रहा हुआ हो तो सूख जाए।
• अष्ट प्रातिहार्य या परिकर युक्त प्रतिमा के परिकर का अंगलुंछन भी करना चाहिए।
• देवी-देवता, गुरु मूर्ति, परिकर आदि का अंगलुंछण वस्त्र अलग रखना