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94... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता – मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... रत्नप्रमुख अडजातिना कलशा, औषधि चूरण मिलावे क्षीर समुद्र तीर्थोदक आणी, स्नात्र करी गुण गावे, हो सुरपति ऐणी परे जिनप्रतिमा को न्हवण करी, बोधिबीज मनु वावे अनुक्रमे गुणरत्नाकर फरसी, जिन उत्तम पद पावे, हो सुरपति।।
अर्थ- परमात्मा के जन्म के बारे में ज्ञात होते ही शक्रेन्द्र पाँच रूप बनाकर परमात्मा को मेरू शिखर पर ले जाते हैं। देवतागण रत्न, स्वर्ण, रजत आदि आठ प्रकार के कलशों को समुद्रों एवं विविध तीर्थों की नदियों के जल से भरकर उसमें सुगन्धित चूर्ण एवं औषधियां मिलाकर परमात्मा का गुणगान पूर्वक न्हवण करते हैं। इस प्रकार जिनप्रतिमा का न्हवण करते हुए भव्य जीव सम्यक्त्व रूपी बोधि बीज का वपन करते हैं तथा अनुक्रम से परमात्मा के गुणों का स्पर्श करते हुए सर्वोत्तम जिनेश्वर पद की प्राप्ति करते हैं। प्रक्षाल करते समय बोलने का दोहा : दोहा- ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपूर ।
श्री जिनने न्हवरावता, कर्म थया चकचूर ।। अर्थ- आत्मारूपी ज्ञान कलश में समतारस रूपी जल भरकर परमात्मा का न्हवण करने से कर्मों का नाश होता है।
जल पूजा करने के बाद भी जिनप्रतिमा पर कहीं केशर आदि रह गई हो तो भीगे हए अंगलंछण से उसे साफ करें। जरूरी होने पर वालाकुंची एवं चाँदी या तांबे की सलाई का प्रयोग करें। तीन वस्त्रों से परमात्मा का अंगलुंछण करें।
चंदन पूजा- अष्ट प्रकारी पूजा में दूसरे क्रम पर चंदन पूजा की जाती है। इस पूजा के माध्यम से आत्मा में रही विषय-कषाय की गर्मी को परमात्मा के शीतल गुणों द्वारा दूर करने का प्रयास किया जाता है। केसर, चंदन, बरास आदि सुगन्धित द्रव्यों के मिश्रण से निर्मित रस को जन भाषा में चंदन या केशर कहा जाता है। बाएँ हाथ में चंदन रस की कटोरी लेकर दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली (ring finger) से पूजा की जाती है। ___चंदन पूजा के अंतर्गत जिनबिम्ब के नौ अंगों पर चंदन लगाया जाता है1. दो चरण 2. दो घुटना 3. दो कलाई 4. दो स्कंध 5. शिखा 6. ललाट 7. कंठ 8. हृदय और 9. नाभि। इन नौ अंगों पर कुल 13 टीकी लगाई जाती है।
परमात्मा के समक्ष चंदन की कटोरी लेकर चिंतन करें- हे प्रभु! जिस