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92... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... भावपूर्वक की गई आराधना ही पुण्य के सर्जन एवं दुष्कर्मों के वर्जन में हेतुभूत बन सकती है। ____ आज का बहुसंख्यक युवा वर्ग अष्टप्रकारी पूजा के नाम से भी अपरिचित है क्योंकि School, Tution और Extra Classes के चलते धर्म क्रियाओं के लिए उन्हें समय ही नहीं है और न ही वैसे संस्कारों का बीजारोपण उनमें किया जा रहा है। मन्दिरों की बढ़ती दूरियाँ भी इसका एक मुख्य कारण है। साधुसाध्वियों की अल्पता एवं स्वाध्याय के प्रति श्रावक वर्ग का उपेक्षा भाव भी उन्हें सम्यक् तत्त्वों की जानकारी नहीं होने देता। इन सबको देखते हुए सर्वप्रथम अष्टप्रकारी पूजा की विधि, दोहों का सामान्य परिचय एवं अर्थ बताया जा रहा है। ___अष्टप्रकारी के नाम से ही यह स्पष्ट है कि इसमें आठ प्रकार की पूजाओं का समावेश होता है। उनके नाम इस प्रकार हैं- 1. जलपूजा 2. चंदन पूजा 3. पुष्प पूजा 4. धूप पूजा 5. दीपक पूजा 6. अक्षत पूजा 7. नैवेद्य पूजा और 8 फल पूजा।
इन आठ पूजाओं में से प्रारम्भ की तीन पूजाएँ जिनबिम्ब पर की जाती हैं। इन्हें अंगपूजा भी कहते हैं। इसके बाद की धूप एवं दीपक पूजा गर्भगृह के बाहर जिनबिम्ब के सम्मुख की जाती है तथा शेष तीन पूजाएँ रंगमंडप में पट्टा, चौकी या बाजोट पर सम्पन्न की जाती है।
पूर्वाचार्यों के अनुसार अष्टप्रकारी पूजा का समय मध्याह्न काल है, परन्तु वर्तमान में त्रिकाल पूजा का विधिवत आचरण लगभग नहीं होने से तथा लोगों की व्यस्त जीवनशैली के कारण इसे अधिकतर प्रात:काल में ही सम्पन्न कर लेते हैं। नियमत: सूर्योदय होने के बाद ही ये पूजाएँ की जानी चाहिए। अष्टप्रकारी पूजा विधि एवं दोहों का सार्थ विवरण - अष्टप्रकारी पूजा में सर्वप्रथम जिनबिम्ब पर जलपूजा की जाती है। जलपूजा के द्वारा प्रक्षाल पूर्वक जिनप्रतिमा पर रहे हुए बासी निर्माल्य को जयणापूर्वक उतारा जाता है। तदनन्तर सम्यक निरीक्षण करते हुए परमात्मा की वासक्षेप पूजा की जाती है।
वासक्षेप का अर्थ है सुगंध वासित चूर्ण का क्षेपण करना या चढ़ाना। वर्तमान में इस सुगंधित चूर्ण को ही वासक्षेप कहा जाता है। यह चूर्ण चंदन