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68... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म....
करने से पूर्व सुगन्धी तेल आदि से विधिपूर्वक तैलमर्दन (मालीश) करना चाहिए। इससे प्रमाद दशा दूर होकर शरीर में स्फूर्ति आती है।
• स्नान करने की भूमि का निरीक्षण कर जयणा पूर्वक परात, बाल्टी आदि रखनी चाहिए। छने हुए जल का ही प्रयोग स्नान हेतु करना चाहिए । इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके पीतल की परात आदि में बैठकर स्नान करना चाहिए ।
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• कुछ ग्रन्थकारों के अनुसार भावपूर्वक मंत्र स्नान करना चाहिए। दोनों हाथों को अंजलि मुद्रा में बनाते हुए एवं उसमें तीर्थों के पवित्र जल की कल्पना करते हुए उसके द्वारा अपने शरीर की शुद्धि कर रहे हैं ऐसी भावना करें एवं निम्न मंत्र का उच्चारण करें
“ॐ अमले विमले सर्वतीर्थ जले पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा।।”
• स्नान करते हुए पूर्ण वस्त्र नहीं उतारने चाहिए तथा मौनपूर्वक स्नान करना चाहिए।
• स्नान करने के बाद शास्त्र कथन के अनुसार शरीर को पोछना नहीं चाहिए। पूरा पानी निथर जाए उसके बाद वस्त्र पहनने चाहिए। परंतु प्रचलित परम्परा में शुद्ध Towel आदि के प्रयोग की विधि देखी जाती है।
• शरीर सूखने के बाद पूजा के वस्त्र पहनने चाहिए।
के वस्त्र पहनने की विधि
श्राद्ध विधि प्रकरण में पूर्वोक्त रीति से स्नान करने के बाद वस्त्र पहनने की विधि बताते हुए कहा गया है कि
• स्नान करने के पश्चात थोड़े समय तक वहीं खड़े रहना चाहिए । जब शरीर पर रहा पानी पूरा टपक जाए उसके बाद शरीर को पोंछें ।
• शरीर पोंछने हेतु स्वच्छ, मुलायम, सुगंधी रेशमी या सूती वस्त्र जो पानी सोख सके ऐसा वस्त्र प्रयोग में लेना चाहिए। जब पूरा पानी सूख जाए या शरीर का भीगापन चला जाए तो उसके बाद दूसरा वस्त्र पहनना चाहिए।
पूजा
• केश आदि पूजा के वस्त्र पहनने से पूर्व ही संवारना चाहिए ।
भीगे पैरों से गंदी जमीन पर नहीं जाना चाहिए।
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हुए
• पूजा हेतु योग्य स्थान में खड़े होकर एवं उत्तर दिशा की ओर मुख करते