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जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार....../ योग से परम श्रावक निर्वाणसाधनी पूजा का अधिकारी बनता है।
तृतीय प्रकार- त्रिविध पूजा का वर्णन करते हुए विंशति विंशिका में साधन भेद के आधार पर 1. समन्तभद्रा 2. सर्वमंगला और 3. सर्वासिद्धिफला नामक तीन भेद किए गए हैं।31
1. समन्तभद्रा पूजा- जिस पूजा में अपनी उत्तम वस्तु देकर या अर्पण करके स्वयं को संतुष्टि करने का भाव मुख्य होता है तथा जिसमें काय योग की प्रधानता रहती है, वह समन्तभद्रा पूजा है। बंधक एवं सम्यग्दृष्टि श्रावक इसके अधिकारी होते हैं। लोक में सर्वाधिक संख्या इन्हीं की देखी जाती है।
2. सर्वमंगला पूजा- प्रथम पूजा में अर्पण की हुई वस्तुओं के औचित्य का विचार करते हुए उन्हें दूसरों से मंगवाकर प्रयोग करना सर्वमंगला पूजा है। यह पूजा वचन क्रिया प्रधान है तथा उत्तरगुणधारी श्रावक इसके अधिकारी होते हैं।
3. सर्वसिद्धिफल पूजा- तीसरी पूजा परमतत्त्व विषयक है। पूजा योग्य उत्तम पदार्थों की गवेषणा से मन को जोड़ना सर्वसिद्धिफला पूजा है। इस पूजा में मनोयोग की प्रधानता रहती है। यह पूजा सर्व प्रकार की सिद्धियों को फल रूप में देती है। अबन्धक योग के परम श्रावक के लिए यह पूजा बताई गई है।
इन पूजाओं के अधिकारी श्रावकों की संख्या उत्तरोत्तर घटती जाती है अर्थात प्रथम समन्त भद्रा पूजा की अपेक्षा सर्वमंगला पूजा करने योग्य श्रावक कम हैं तथा तृतीय वर्ग के आराधक और भी कम हैं। पर श्रावकों की Quality या गुणवत्ता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। संक्षिप्त में कहें तो 'As Quality increases Quantity decreases.'
अब तक वर्णित तीनों प्रकार की पूजाओं का नामकरण मात्र विविध अपेक्षाओं से किया गया है। तीनों का वर्णन एवं इनके अधिकारी प्राय: समान हैं।
चतुर्थ प्रकार- धर्मरत्न करंडक, योगशास्त्र एवं चैत्यवंदन भाष्य में पुष्प, आहार एवं स्तुतिपूर्वक जिनपूजा करने का वर्णन है।32 यह अंग, अग्र एवं भावपूजा का ही प्रकारान्तर है। पुष्पपूजा के द्वारा अंगपूजा, आहार या नैवेद्य द्वारा अग्रपूजा एवं स्तुति द्वारा भावपूजा की जाती है। कहीं-कहीं पर पुष्प, अक्षत और स्तुति का भी वर्णन मिलता है।33