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6... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
समाधान- साधु के लिए स्नान आदि क्रियाओं का निषेध शरीर विभूषा आदि के कारण किया गया है। जिनपूजा एक धार्मिक आराधना है, अत: उसके निमित्त साधु को स्नान आदि का निषेध किया गया हो, यह शक्य नहीं है। अन्यथा गृहस्थ के लिए भी जिनपूजा आदि के निमित्त हिंसा करने का निषेध होता। गृहस्थ कुटुम्ब परिवार आदि से युक्त होने के कारण अधिकांश समय उसे आरंभ-समारंभ आदि की क्रियाएँ करनी पड़ती है। अत: जिनपूजा के निमित्त से गृहस्थ को स्नान करने का अधिकार है परंतु साधु-साध्वी आरंभ-समारंभ की क्रियाओं से पूर्णत: निवृत्त हैं तथा द्रव्य रहित होने से द्रव्यपूजा के भी त्यागी हैं, इस कारण जिनपूजा निमित्त उन्हें स्नान आदि का अधिकार नहीं है।
गृहस्थ को जिनपूजा निमित्त स्नान आदि करते हुए तथा पुष्प आदि चढ़ाते हुए स्वरूप हिंसा का दोष व्यवहारत: लगता है परन्तु सम्यक्दर्शन की शुद्धि, पुण्यानुबंधी पुण्य का अर्जन और कर्म निर्जरा आदि कई विशिष्ट लाभ भी होते हैं।29
द्वितीय प्रकार- षोडशक प्रकरण, द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, चैत्यवंदन महाभाष्य, सम्बोध प्रकरण आदि में फल प्राप्ति के आधार पर त्रिविध पूजा का उल्लेख करते हुए उसके निम्न तीन भेद बताए गए हैं-30 1. विघ्नोपशमनी 2. अभ्युदय प्रसाधनी और 3. निर्वाण साधनी। __ ये तीनों भेद पूर्ववर्णित तीन भेदों के ही पर्यायवाची नाम हैं। काययोगप्रधान आदि भेद योग की अपेक्षा से है वहीं विघ्नोपशमनी आदि नाम फल की अपेक्षा से है। ___1. विघ्नोपशमनी पूजा- जो पूजा विघ्नों का उपशमन करे वह विघ्नोपशमनी पूजा है। सहयोग वंचक नामक काययोग प्रधान विघ्नोपशमनी पूजा सम्यग्दृष्टि श्रावक के द्वारा की जाती है।
2. अभ्युदय प्रसाधनी पूजा- यह पूजा अभ्युदय को प्रकृष्ट रूप से साधती है, अत: इसे अभ्युदय प्रसाधनी पूजा कहा गया है। क्रिया वंचक नामक द्वितीय योग से उत्तरगुणधारी श्रावक वचनयोग प्रधान विघ्नोपशमनी पूजा के अधिकारी माने जाते हैं। ___ 3. निर्वाणसाधनी पूजा- मनोयोग प्रधान यह पूजा मोक्ष प्राप्ति में साधक बनती है, अत: इसे निर्वाणसाधनी पूजा कहा गया है। फल वंचक नामक तृतीय