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भूधर विलास
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000 ६९ राग - सोरठ |
अज्ञानी पाप धतूरा न बोय ॥ टेक ॥ फल चाखनकी वार भरे दृग, मर है मूरख रोय ॥ अज्ञा० ॥१॥ किंचित् विषयनिके सुख कारण दुर्लभ देह न खोय । ऐसा अवसर फिर न मिलेगा, इस नींदड़ी न सोय || अज्ञानो || २ || इस विरियां धर्म - कल्पतरु, सींचत स्थाने लोय । तू विष बोवन लागत तो सम, और अभागा कोय || अज्ञानी ॥३॥ जे जगमें दुखदायक बेरस, इसहीके फल सोय । यों मन भूधर जानिकै भाई, फिर क्यों भोंदू होय ॥ अ०
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७० राग सोरठ |
सुन ज्ञानी प्राणी, श्रीगुरु सीख सयानी ॥टेक॥ नरभव पाय विषय मति सेवो, ये दुरगति अगवानी ॥ सुन || १|| यह भव कुल यह तेरी महिमा फिर समझो जिनवानी । इस अवसरमैं यह चपलाई, कौन समझ उर आनी || सुन ||२|| चंदन काठ - कनकके भाजन, भरि गंगाका पानी । तिल
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