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यह सोचो कि अपना हित किस में है । हित माने स्वार्थ नही, मगर शुद्धि । आत्मा की शुद्धि । ' इस शुद्धि मे हित है, मुख है । गरीर शुद्धि के बाद विचारो की और भापा की शुद्धि का प्रयोग करो। शरीर की शुद्धि तक ही मत रुको। दूसरो का हित करने की भावना के साथ अपने हित के प्रति जाग्रत रहो । दूसरो का हित करने की क्षमता प्राप्त करो।
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