Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 38
________________ [ ३२ ] SHI Dia HARY TICCOM मांडवगढ के महामत्री पेथडशाह का जीवन चरित्र मननीय है। अनेक पहलओ से मैने उनका जीवन देखा है"..." मुझे अत्यन्त प्रेरणादायी लगा है। स्वर्णसिद्धि के प्रयोग में प्रचुर हिंसा देखकर आबू के पहाड पर भगवान के सामने रो पड़े थे और पुन. स्वर्णसिद्धि न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी। ३२ वर्ष की युवावस्था मे ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा ले ली थी और मनसावचसा-कायेन उसका पालन किया था। [२७,

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